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________________ गुजराती अनुवाद : अने देवने प्रणाम करीने हाथ जोड़ी ने देवने चित्रवेगे कहयुं, अहो ! शुं तारो स्नेह, दाक्षिण्य अने मित्र वात्सल्य छे। हिन्दी अनुवाद : और देव को प्रणाम कर हाथ जोड़कर चित्रवेग ने देव से कहा आपकी मैत्री अत्यन्त स्नेहयुक्त दाक्षिण्य एवं वात्सल्यपूर्ण है। गाहा : पर - उवयार - रया इह महाणुभावा भवंति पयईए । अणुवकयावि परेणं वट्टंति सयावि उवयारे । । १२३ ।। संस्कृत छाया : परोपकाररता इह महानुभावा भवन्ति प्रकृत्या । अनुपकृताऽपि परेण वर्तन्ते सदाऽप्युपकारे ।। १२३ ।। गुजराती अनुवाद : स्वभाव थी परोपकार मां लागेला महानुभावो होय छे। बीजा एमनुं कई पण काम न करे तो पण ओओ परोपकार करता होय छे। हिन्दी अनुवाद : महानुभाव स्वभाव से परोपकार में लगे रहते हैं। दूसरा कोई उनका कोई भी काम न करें तो भी वे परोपकार करते जाते हैं। गाहा : तुमए दिन्नं जीयं मण संतावो तुमे य निव्वविओ । अणह- सरीरा एसा जं तुमए मज्झ उवणीया । । १२४ । । संस्कृत छाया : त्वया दत्तं जीवितं मनः सन्तापस्त्वया च निर्वापितः । अक्षतशरीरा एषा यत् त्वया मे उपनीता । । १२४ । । गुजराती अनुवाद : ते मने जीवन आप्युं अने मारो संताप दूर कर्यो जेथी ते मने अखंड शरीरवाळी मारी पत्नी लावी आपी।
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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