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________________ संस्कृत छाया : इति चिन्तयित्वा एषाऽदृश्या सुतनो! त्वद् मया विहिता । ज्ञात्वा निश्चयं तवेदानीं पुनः प्रकटिता भद्र! ।।१२०।। गुजराती अनुवाद : आ प्रमाणे विचारीने में तेणी ने तारा माटे अदृश्य कटी हती अने तारा निश्चय जाण्या पछी प्रगट की छे। हिन्दी अनुवाद : ऐसा विचार कर मैंने उसे अदृश्य कर दिया था और तुम्हारा निश्चय जानकर उसे प्रगट कर रहा हूँ। गाहा : ता मा कुण आसंकं सच्चिय एसा उ कणगमालत्ति । इय भणिए सो खयरो पहसिय-वयणो दढं जाओ ।।१२१।। संस्कृत छाया : तस्माद् मा कुर्वाशङ्कां सैवैषा तु कनकमालेति । इति भणिते स खचरः प्रहर्षित-वदनो दृढ़ जातः ।।१२१।। गुजराती अनुवाद : अथी तुं कोई शंका न कर. आ कनकम्माला ज छे. आम जाण्या पछी ते विद्याधर खुश थयो। हिन्दी अनुवाद : इसलिए तुम कोई शंका मत करो। यह कनकमाला ही है, ऐसा जानकर वह विद्याधर खुश हो गया। गाहा : अह पणमिय तं देवं कयंजली भणइ चित्तवेगो सो । अइनेहो दक्खिन्नं अहो णु ते मित्त-वच्छल्लं ।।१२२।। संस्कृत छाया : अथ प्रणम्य तं देवं कृताञ्जलिर्भणति चित्रवेगः सः । अतिस्नेहो दाक्षिण्यं अहो! नु ते मित्रवात्सल्यम् ।।१२२।।
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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