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सोउं इमीइ मरणं किं मन्ने एस कुणइ मह मित्तो ।
किं दढ - रागो अज्जवि अहवावि हु पयणुरागोत्ति ।। ११९ ।।
संस्कृत छाया :
हृत्वा मन्त्र शक्तिं सर्वेषां स्तम्भितं मया तु विषम् ।
ततो मृतेति कलयित्वा मृतकृत्यं तस्याः कर्तुम् (कृत्वा) ।। ११६ ।। नीता प्रेतवने नभोवाहन परिजनेन सा बाला ।
चितायां प्रक्षिप्य यदा उज्ज्वालितो ज्वलनः ।। ११७ । तदाऽपहृत्य विषं गृहत्वेमां समागत इह । । तव समीपे तावच्चैष विकल्पो मम जातः ।। ११८ ।। त्रिसिभिः कुलकम् ।।
श्रुत्वाऽस्या मरणं किम्मन्ये एष करोति मम मित्रम् । किं दृढ़- रागोऽद्याऽप्यथवाऽपि खलु प्रतनुराग इति । । ११९ ।। गुजराती अनुवाद :
बधानी मंत्रशक्ति ने हरण करीने अने तेणीना झेर ना वेगने में रोक्यो. त्यारे ते मरी गई छे, एम मानीने ओनो मृतकार्य करवामाटे नभोवाहन ना सभ्यो ते वाळाने स्मशान मां लई गया. चितापर मूकीने अग्नि प्रगटाव्यो. त्यां तेणीना झेरने दूर करीने तेणीने लईने हुं तारी पासे आव्यो त्यारे मन मां एक विचार आव्यो के तेणीना-मरण ना समाचार सांभळी मारो मित्र शुं करशे ? हजी सुधी शुं तेणीपर अटलोज राग छे के ओछो थयो छे ते जोउं ।
हिन्दी अनुवाद :
जब सबके मन्त्र शक्तियों का हरण कर और उसके जहर के प्रभाव को रोका तब वह मर गई है, ऐसा मानकर उसका मृत- संस्कार करने के लिए नभोवाहन के लोग उसे स्मशान में ले गए। चिता पर रखकर आग लगा दी। वहाँ उसके जहर को दूरकर, उसको लेकर जब मैं तुम्हारे पास आया तो मन में एक विचार आया कि उसकी मृत्यु का समाचार सुनकर मेरा मित्र क्या कहेगा। आज तक भी तुम्हारा उसके प्रति राग उतना ही है, या कम हो गया है, मैं देखूँ।
गाहा :
इय चिंतिऊण एसा अद्दिस्सा सुयणु ! तुह मए विहिया । नाऊण निच्छयं ते इण्हिं पुण पयडिया भद्द! ।। १२० ।।