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________________ संस्कृत छाया : कृत-मरणाध्यवसाया ततश्च मया विचिन्तितमेतद् । गृहीत्वेमां पश्चात् गमिष्यामि मित्र-पार्थे ।।११४।। गुजराती अनुवाद : मरण नी इच्छणवाळी तेणीने जाणीने में विचार्यु के अने लई ने हुं मारा मित्र पासे जईस। हिन्दी अनुवाद :- मरने की इच्छावाली उसे जानकर मैंने विचार किया कि इसे लेकर मैं अपने मित्र के पास जाऊँगा। गाहा : इय चिंतिय पत्तो हं गंगावत्तम्मि तम्मि नयरम्मि । विस-वेय-विहुरियंगी दिट्ठा य मए इमा तत्थ ।।११५।। संस्कृत छाया : इति चिन्तयित्वा प्राप्तोऽहं गङ्गावर्ते तस्मिन्नगरे । विष-वेग-विधुरिताङ्गी दृष्टा च मयेयं तत्र ।।११५।। गुजराती अनुवाद : आ प्रमाणे विचार करीने हुं गंगावर्त नगर मां गयो, त्यां में खाधेला झेर वाळी तेणीने जोई। हिन्दी अनुवाद : ऐसा विचार कर मैं गंगावर्त नगर में गया, वहाँ मैंने उसे देखा जो जहर से व्याप्त अंग वाली थी। गाहा : हंतूण मंत-सत्तिं सव्वेसिं थंभियं मए उ विसं । तत्तो मयत्ति कलिउं मय-किच्चं तीए काऊणं ।।११६।। नीया पेय-वणम्मी नहवाहण-परियणेण सा बाला । चीयाए पक्खिविउं जाहे उज्जालिओ जलणो ।।११७।। ताहे अवहरिय विसं घेत्तूण इमं समागओ इहई। तुज्झ समीवे ताव य एस विगप्पो महं जाओ ।।११८।।
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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