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गाहा :
न हु हरिसो संजोगे नेवं विसाओवि इट्ठ-विरहम्मि ।
कायव्यो बुद्धिमया संसार-सरूवयं नाउं ।।१०।। संस्कृत छाया :
न खलु हर्षः संयोगे नैव विषादोऽपि इष्टविरहे।
कर्तव्यो बुद्धिमता संसार-स्वरूपं ज्ञात्वा ।।१०।। गुजराती अनुवाद :
तेथी खरेखर ईष्टना संयोग मां हर्ष अने ईष्ट ना वियोग मां विषाद करवो बुद्धिमान ने, संसार स्वछप ने जाणेलाने माटे योग्य नथी। हिन्दी अनुवाद :
इसलिए इष्ट के संयोग से हर्ष एवं इष्ट के वियोग से दुःख को प्राप्त होना बुद्धिमान के लिए तथा जिसे संसार के स्वरूप का भलीभाँति ज्ञान हो, योग्य नहीं है। गाहा :
किंच
पुव-भवे जो तुमए अणुरागो नेव उज्झिओ तइया। समणत्तणेवि पत्ते तस्स पभावाउ सग्गेवि ।।१०१।। रिद्धि-बल-तेय-हीणो आसि तुमं तह य एत्य जम्मम्मि ।
एवं विओय-दुक्खं पत्तं तक्कम्म-दोसेण ।।१०२।। संस्कृत छाया :
किंच पूर्वभवे यस्त्वयाऽनुरागो नैवोज्झितस्तदा। श्रमणत्वेऽपि प्राप्ते तस्य प्रभावात् स्वर्गेऽपि ।।१०१।। ऋद्धिबलतेजोहीन आसीत्त्वं तथा चात्र जन्मनि ।
एवं वियोग-दुःखं प्राप्तं तत्कर्मदोषेण ।।१०२।। युग्मम्।। गुजराती अनुवाद :
वळी पूर्वभवमां ते साधु पणु लीधा छतां तेणी ना प्रत्ये राग छोड़यो न हतो. तेथी तेना प्रभाव थी स्वर्गमां पण रिद्धि, वय अने तेज मां तु हीन थयो. अने आ जन्म मां पण कर्मना दोष वड़े तने पत्नीना वियोग नु दुःख प्राप्त थयु।