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________________ हिन्दी अनुवाद : पूर्वभव में श्रमणत्व स्वीकार कर भी उसके प्रति राग छोड़े नहीं थे। उसके प्रभाव से स्वर्ग में भी रिद्धि, वय और तेज में तूं हीन हुआ। और इस जन्म में भी उस कर्म के दोष के कारण तुम्हें पत्नी वियोग का दुःख प्राप्त हुआ। गाहा : तहवि हु अज्जवि रागं तीए उवरिं न मुंचसे कीस? । एवंविह-दुक्खाणं एसो च्चिय कारणं परमं ।।१०३।। संस्कृत छाया : तथापि खल्वद्याऽपि रागं तस्या उपरि न मुञ्चसि कस्मात्?। एवंविध-दुःखानामेष एव कारणं परमम् ।।१०३।। गुजराती अनुवाद : तो पण आज सुधी शा कारण थी तेणी ऊपरना रागने छोड़तो नथी? आवा प्रकार ना दुःखनु आ ज वास्तविक कारण छ। हिन्दी अनुवाद : तो भी आज तक किस कारण से उसके प्रति टाग नहीं छोड़ रहे । हो। इस प्रकार के दुःखों का यही वास्तविक कारण है। गाहा : अह भणइ चित्तवेगो सुर-वर! मह फुरइ दाहिणं नयणं । पहसिय-मुहो य दीससि तुमंति ता कहसु परमत्थं ।।१०४।। संस्कृत छाया : अथ भणति चित्रवेगः सुरवर! मम स्फुरति दक्षिणं नयनम् । प्रहर्षितमुखश्च दृश्यसे त्वमिति तस्मात् कथय परमार्थम् ।।१०४।। गुजराती अनुवाद : हवे चिरवेगे कहयुं हे देव मारी जन्मणी आँख फरके छे अने तुं खूब खुश देखाय छे तेथी मने वास्तविक शुं छे ते कहे। हिन्दी अनुवाद : तब चित्रवेग ने कहा कि हे देव! मेरी दाहिनी आँख फड़क रही है और तुम खूब खुश हो गये हो, इसलिए वास्तविकता क्या है मुझे बताओ।
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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