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________________ समाचार : 67 २. ध्यानशतक, प्राकृत, जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण - आगमों पर प्राकृत भाष्य रचयिता जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण (लगभग छठीं शती ई.) द्वारा विरचित प्राकृत कृति झाणज्झयण (ध्यानाध्ययन) जैन परम्परा में ध्यान विषय की प्राचीनतम एवं प्रथम स्वतन्त्र कृति मानी जाती है। इसे हरिभद्र ने ध्यानशतक नाम प्रदान किया है और यह इसी नाम से अधिक प्रचलित है। इसमें १०६ गाथायें हैं। ध्यान-सामान्य का लक्षण, ध्यान-काल, स्वामी प्रकार एवं ध्यान फल निरूपण से ग्रन्थ का आरम्भ किया गया है। ध्यान के चार प्रकारों - आर्त, रौद्र, धर्म एवं शुक्ल ध्यान का स्वरूप एवं उपभेद, स्वामी-निर्देश, चारों ध्यानों में सम्भव लेश्याओं का निर्देश है। आर्त ध्यान संसार का कारण क्यो है? जीव के संसार परिभ्रमण का कारण, आर्त और रौद्र ध्यान के लिङ्ग, धर्मध्यान की प्ररूपणा में द्वारों का निर्देश, धर्मध्यान में उपयोगी चार भावनाओं का स्वरूप, धर्मध्यान के योग्य देश, काल, आसन एवं आलम्बन, ध्येय के चार भेदों का स्वरूप, धर्म ध्यान-ध्याता, धर्म ध्यान के समाप्त होने पर चिन्तनीय अनित्यादि भावनाओं का निर्देश, धर्म एवं शुक्ल ध्यान के क्रम का निरूपण, शुक्ल ध्यान का आलम्बन, ध्याता एवं उसके प्रकारों का निरूपण, उपभेदों के स्वामियों का निर्देश, शुक्लध्यान की परिसमाप्ति पर ध्यातव्य चार अनुप्रेक्षाओं का निर्देश, धर्मध्यान और शुक्लध्यान के फल का निरूपण किया गया है। अन्त में मोक्ष सुख का स्वरूप, ध्यान मोक्ष का हेतु है इसका अनेक दृष्टान्तों द्वारा स्पष्टीकरण और ध्यान के सांसारिक फल का निर्देश किया गया है। इस महत्वपूर्ण कृति की आलोचनात्मक प्रस्तावना, हिन्दी अनुवाद, हरिभद्र वृत्ति एवं विविध परिशिष्टों सहित बीर सेवा मन्दिर दिल्ली द्वारा प्रकाशन (१९७६) किया गया है। इसका सम्पादन पं० बाल चन्द्र सिद्धान्त शास्त्री ने किया है। हिन्दी अनुवाद एवं व्याख्या सहित इसका प्रकाशन प्राकृत भारती अकादमी जयपुर द्वारा (२००७ में) किया गया है। सम्पादन एवं व्याख्या श्री कन्हैयालाल लोढ़ा एवं डा० सुषमा सिंघवी ने किया है।
SR No.525088
Book TitleSramana 2014 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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