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जैन साधना में श्रावक धर्म : 27 सामायिक शिक्षाव्रत के पाँच अतिचार- मन को चंचल करना, वचन को अशुभ या चंचल करना, काय को अस्थिर रखना, सामायिक में अनादर करना, प्रमादवश पाठ को भूल जाना-ये सामायिक व्रत के पाँच अतिचार हैं
वाक्कायमानसानां, दुःप्रणिधानान्यनादरास्मरणे।
सामायिकस्यातिगमा, व्यज्यन्ते पञ्चभावेन९।। ३. प्रोषधोपवास शिक्षाव्रत - सामायिक के संस्कारों को दृढ़ बनाने के लिये, परीषह आदि उपसर्गों पर विजय प्राप्त करने के लिए श्रावक प्रत्येक महीने के चारों पर्वदिवसों (कृष्णपक्ष की अष्टमी तथा चतुर्दशी, शुक्ल पक्ष की अष्टमी तथा चतुर्दशी) में स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु एवं कर्ण इन पाँचों इन्द्रियों को अपने विषय से रोककर खाद्य, स्वाद्य, लेह्य, पेय- इन चारों प्रकार के आहार का शास्त्रानुसार त्याग करता है, उसके इस त्याग को प्रोषधोपवास कहते हैं। प्रोषधोपवास शिक्षाव्रत के अतिचार- उपवास के दिन बिना देखे, बिना शोधे वस्तुओं को रखना, उठाना, बिना देखे, बिना शोधे स्थान पर मलमूत्रादि त्याग करना, बिना शोधे बिस्तर बिछाना, अरुचि के साथ उपवास करना तथा प्रोषधोपवास की क्रियाओं को भूल जाना- ये प्रोषधोपवास शिक्षाव्रत के पाँच अतिचार हैं। ३. वैयावृत्य (अतिथिसंविभाग) शिक्षाव्रत - राग-द्वेष एवं विषयों से विरक्त, नीरस आहार करने वाले, चारों पुरुषार्थों के ज्ञाता, ऋद्धि से गर्व रहित मुनि आदि साधु-जनों को निर्दोष आहार, औषधि, उपकरण, आवास ऐसे चार प्रकार के दान देना वैयावृत्य शिक्षाव्रत है। वैयावृत्य शिक्षाव्रत के अतिचार- मुनि आदि को दिये जाने वाले अचित्त भोजन को किसी सचित्त वस्तु जैसे हरे पत्ते आदि पर रख देना, अचित्त भोजन को सचित्त पदार्थ जैसे हरे पत्ते आदि से ढंक देना, मुनि आदि के लिए आहार तैयार करके आहार कराने के लिए किसी अन्य को कहना,