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________________ 26 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 2/अप्रैल-जून 2014 शिक्षाव्रत - शिक्षाव्रत का सम्बन्ध व्यक्ति के सीखने व अभ्यास करने से है। जिस आचरण से उच्च चारित्र धारण करने की शिक्षा मिलती है, उन्हें शिक्षाव्रत कहते हैं। चार प्रकार के शिक्षाव्रत बताये हैं२७. १. देशावकाशिक, २. सामायिक, ३. प्रोषधोपवास, ४. वैयावृत्य १. देशावकाशिकदिक् व्रत में घंटा, दिन, मास आदि समय तथा क्षेत्र का संकोच करके गली, मुहल्ला, नगर, मकान आदि में आने-जाने का नियम बना लेना देशावकाशिक व्रत है। देशावकाशिक शिक्षा व्रत के पाँच अतिचार - 'सागारधर्मामृत' में उल्लिखित है कि निश्चित की गई सीमा के बाहर ढेला आदि फेंकना, शब्द सुनाना, अपना शरीर दिखाना, किसी अन्य को भेजना, सीमा के बाहर से कुछ मँगाना- इन पाँच अतिचारों को त्याग देना चाहिए पुगलक्षेपणं शब्दश्रावणं स्वाङ्गदर्शनम्। प्रैषं सीमाबहिर्देशे ततश्चानयनं त्यजेत् ।। २. सामायिकसंसार के समस्त जीवों के प्रति समभाव रखना ही सामायिक शिक्षाव्रत है। सामायिक के लिए श्रावक को तन-मन दोनों से ही स्वस्थ होना आवश्यक है। मन, वचन तथा कर्म की पवित्रता से समता का भाव उत्पन्न होता है। गृहस्थ को इसी समता भाव के अभ्यास के लिए दिन में किसी भी समय शान्त वातावरण में धर्म-चिन्तन करना चाहिए। अस्तु शुद्ध एकान्त स्थान में समस्त इष्ट पदार्थों से राग-भाव और अनिष्ट पदार्थों से द्वेषभाव छोड़ कर समता भाव धारण करना, आत्मचिन्तन करना, वैराग्य भाव धारण करना, परमेष्ठियों का चिन्तन करना सामायिक शिक्षाव्रत है।
SR No.525088
Book TitleSramana 2014 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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