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जैन साधना में श्रावक धर्म : 25 २. अनर्थदण्डव्रत - समस्त पापपूर्ण निरर्थक प्रवृत्तियों से निवृत्त होना अनर्थदण्डव्रत है। समन्तभद्र ने पापोपदेश, हिंसा, दान, अपध्यान, दुःश्रुति एवम् प्रमादचर्याये पाँच अनर्थदण्डव्रत बताये हैं
पापोपदेशहिंसा दानापध्यान दुःश्रुती पज्वः।
प्राहुः प्रमादच-मनर्थदण्डानदण्डधराः।।२५ अनर्थदण्डव्रत के पाँच अतिचारआचार्य समन्तभद्रस्वामी ने कंदर्प (राग-भाव से युक्त होकर अश्लील वचन कहना), कौत्कुच्य (अश्लील वचन सहित शरीर के अंगों के द्वारा कुत्सित चेष्टा करना), मौखर्य (धृष्टतापूर्वक असत्य वचन बोलना), अति प्रसाधन (आवश्यकता से अधिक भोगोपभोग की वस्तुओं का संग्रह करना), असमीक्ष्याधिकरण (बिना विचारे कार्य करना)- ये पाँच अतिचार अनर्थदण्डव्रत के बताये हैं:
"कंदर्पकौत्कुच्यं मौखHमतिप्रसाधनं पञ्च। - असमीक्ष्यचाधिकरणं व्यतीतयोऽनर्थदण्डकृद्विरते।।२६ ३.भोगोपभोगपरिमाण व्रत - जो वस्तु एक बार भोगकर छोड़ दी जाती है, उसे भोग और जिसे भोगकर पुनः भोगा जाता है, वह उपभोग है। भोग्य, उपभोग्य पदार्थ का नियम रूप से परिणाम करना और शेष का त्याग करना भोगोपभोगपरिमाण व्रत कहा जाता है। भोगोपभोगपरिमाण व्रत के अतिचार - विषय रूपी विष का सेवन कर उनकी उपेक्षा न करना, भोगे गये विषयों को बार-बार स्मरण करना, भोगों को भोगने के बाद पुनः भोगने की इच्छा करना, भविष्य में भी भोगों को भोगने की अति इच्छा रखना तथा तात्कालिक भोग वस्तुओं का सेवन करते हुए अति आसक्ति रखना भोगोपभोग परिमाणव्रत के पाँच अतिचार हैं।