SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन अभिलेखों का वैशिष्ट्य : 25 इसी प्रकार होयसल वंश दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध राजवंश था। इस वंश की स्थापना में भी जैन मुनि का योगदान था और उन्हीं के उच्च आदर्शों पर राजवंश की स्थापना हुई थी। प्रारम्भिक अभिलेखों में इसका सविस्तार वर्णन है। अभिलेखों से ज्ञात होता है कि इस वंश का नामकरण भी जैन मुनि के आशीर्वाद से हुआ। साधना में रत एक जैन मुनि पर व्याघ्र द्वारा आक्रमण करते हुए देखकर मुनि के द्वारा पोय, सल (हे सल, इसे मारो) बोलने पर सल नामक वीर व्यक्ति ने अपना नाम ही पोयसल रखा और व्याघ्र को अपना राजचिह्न बनाया। इस वंश के नरेश पोयसल या होयसल कहलाए और व्याघ्र उनके लाञ्छन के रूप में प्रसिद्ध हो गया। इसी अभिलेख में विष्णुवर्द्धन की पटरानी शांतलादेवी को पतिव्रत, धर्मपरायणता एवं भक्ति में रुक्मिणी, सत्यभामा और सीता जैसी देवियों के समान बताया गया है"अनवरतपरमकल्याणांभ्युदयशतसहस्रफलभोग भागिनी द्वितीय लक्ष्मी सामनेयुः। अभिनवरुक्मिणी देवियु। पतिहितसत्यभामेयु। विवेकक बृहस्पतियु। पतिव्रताप्रभावप्रसिद्धसीतेयु। प्राचीन भारतीय इतिहास की कुछ अनसुलझी गुत्थियों को सुलझाने में जैन अभिलेखों का प्रशंसनीय योगदान है। इस सन्दर्भ में गुप्त सम्राट रामगुप्त का दृष्टान्त विचारणीय है। देवीचन्द्रगुप्तम् नाटक के कुछ अंशों को पढ़कर प्रसिद्ध विद्वान् सिलवां लेवी ने रामगुप्त की ऐतिहासिकता का एक क्षीण अनुमान लगाया था। रामगुप्त का कथानक तत्कालीन साक्ष्यों के आलोक में अनैतिहासिक प्रतीत होता था हालाँकि कुछ साहित्यिक ग्रन्थों में इसके संदर्भ मिलने प्रारम्भ हो गये थे। कालान्तर में कुछ मुद्रा साक्ष्य भी प्राप्त हुए परन्तु उसकी ऐतिहासिकता सन्देह के घेरे में थी और इतिहासकार दो परस्पर विरोधी गुटों में विभाजित थे। जब तीर्थंकर मूर्तियों से सम्बन्धित आयागपटों पर गुप्तकालीन लिपि में तीन लेख विदिशा से प्राप्त हुए तब उनकी ऐतिहासिकता पर संदेह सदा के लिए समाप्त हो गया। यह स्वीकार कर लिया गया कि रामगुप्त सम्भवतः जैन धर्मावलम्बी था। वह परिस्थितियों के कारण विवश था और व्यर्थ के रक्तपात से बचना चाहता था। सांस्कृतिक सामग्री की प्रचुरता : जैन अभिलेख सांस्कृतिक दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण हैं। जैन धर्म के विशेष संदर्भ में ये साहित्यिक स्रोतों का समर्थन तो करते ही हैं उससे ज्यादा अकाट्य एवं परिपक्व साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। उदाहरणार्थ- जैन
SR No.525087
Book TitleSramana 2014 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy