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________________ 26 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 1/जनवरी-मार्च 2014 संघ के ऐतिहासिक विभाजन की प्राथमिक जानकारी हमें जैन अभिलेख से ही प्राप्त होती है। जैन संघ का विभाजन श्वेताम्बर-दिगम्बर एवं यापनीय सम्प्रदाय में हुआ। श्वेताम्बर सम्प्रदाय में संघ विभाजन की प्रारम्भिक सूचना तीसरी शताब्दी के उत्तराध्ययन नियुक्ति और ग्रन्थों से ही प्राप्त होती है जबकि इस सम्बन्ध में सूचना देने वाला दिगम्बर सम्प्रदाय का प्राचीनतम स्रोत दसवीं शताब्दी के मध्य का हरिषेण का बृहत्कथाकोष है। इसके पूर्व हमें किसी भी जैन साहित्यिक स्रोत से इसकी सूचना नहीं मिलती। यहाँ उल्लेखनीय है कि संघ विभाजन की आभिलेखिक सूचना हमें पाँचवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में ही मिल जाती है। कदम्ब वंश के यशस्वी नरेश मयूरशर्मन निर्गत अभिलेख में श्वेतपट (श्वेताम्बर), निर्ग्रन्थ (दिगम्बर) एवं यापनीय का एक साथ उल्लेख मिलना ऐतिहासिक दृष्टि से अतिविशिष्ट है। इसके अतिरिक्त दिगम्बर एवं श्वेताम्बर सम्प्रदायों के ग्रन्थों में एक दूसरे के प्रति भ्रामक सूचना दी गई। श्वेताम्बर सम्प्रदाय के ग्रन्थों में अन्तिम निह्नव के रूप में बोटिक या बोडिग सम्प्रदाय तथा दिगम्बर सम्प्रदाय के ग्रन्थों में अर्धफलक सम्प्रदाय की सूचना दी गई है जिसका कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है। ऐसी किसी भी भ्रामक सूचना का जैन अभिलेखों में नितान्त अभाव है। उक्त अभिलेख "नमः जयति भगवाज्जिनेन्द्रो के साथ प्रारम्भ होता है तथा नमो नमःषभाम नमः के साथ अन्त होता है। जैन अभिलेख साहित्यिक ग्रन्थों की ऐतिहासिकता की पृष्टि के लिए सूचना प्रदान करते हैं। जैन संघ के ऐतिहासिक विभाजन के पहले हमें गणों, कुलों एवं संभोगों का विकास दिखायी देता है। कल्पसूत्र में विभिन्न आचार्यों से निस्सृत गणों, कुलों एवं शाखाओं का उल्लेख है। इस ग्रन्थ में प्रसिद्ध आङ्ग गण, उडुवाडिय गण, उत्तरबलिस्सह गण एवं वेषवाटिक गण का उल्लेख है। इनमें से चारण या वारण', कोट्टियार, उद्देहिकीय गण तथा वेषवाटिक गण के मेहिय कुल ३ का आभिलेखिक साक्ष्य प्राप्त होता है। कुषाणकालीन ये अभिलेख ग्रन्थ में वर्णित संदर्भो की ऐतिहासिकता को पुष्ट करते हैं। इसी ग्रन्थ में महावीर के गर्भापहरण एवं उसे पुनर्स्थापित करने का संदर्भ प्राप्त होता है। इसकी पुष्टि मथुरा से प्राप्त मथुरा के अभिलेखों से ही होती है। मथुरा से प्राप्त ईसा पूर्व के एक अभिलेख में हरिणम जिसने इस घटना को सम्पन्न किया था को भगवानमेसो कहा गया है। यह अभिलेख बुरी तरह खण्डित है।४ पत्थरों पर भी इसका चित्रण किया गया है जो मथुरा के म्यूजियम में सुरक्षित है।
SR No.525087
Book TitleSramana 2014 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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