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24 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 1/जनवरी-मार्च 2014 सिर्फ जैन अभिलेखों से ही होती है। कलिंग नरेश खारवेल का उदाहरण सर्वप्रसिद्ध है। हाथी गुम्फा अभिलेख के नाम से प्रसिद्ध यह अभिलेख जैन तीर्थंकरों एवं सिद्धों की प्रार्थना से प्रारम्भ होता है। 'नमो अरहतानं, नमो सव सिधानम" यहाँ यह बताना आवश्यक है कि जैन धर्मावलम्बी इस नरेश की ऐतिहासिक उपलब्धियों के बारे में किसी भी साहित्यिक स्रोत से कुछ भी ज्ञात नहीं होता। यदि यह लेख नहीं प्राप्त होता तो इस प्रभावशाली सम्राट के विषय में हम अन्धकार में ही रहते। हाथी गुम्फा के इस अभिलेख का वही महत्त्व है जो समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति अथवा यशोधर्म के मन्दसौर अभिलेख का। यदि ये दोनों अभिलेख नहीं प्राप्त होते तो समुद्रगुप्त की दिग्विजयी भूमिका केवल मुद्राओं के सहारे नहीं आंकी जा सकती थी। कालिदास के रघुवंश के आधार पर रघु के दिग्विजय की जो तुलना समुद्रगुप्त से की जाती है, उसका मूल आधार प्रयाग प्रशस्ति ही है। इसी प्रकार यदि मन्दसौर का अभिलेख नहीं मिलता तो हम यशोधर्म के विषय में बिल्कुल अन्जान रहते और यह नहीं जान पाते कि सदाशिव के चरणों में नत रहने वाले मिहिरकुल को किसने अपने पैरों में नत रहने को विवश किया।
जैन अभिलेख केवल उत्तर भारत के इतिहास में ही प्रासंगिक नहीं हैं अपितु सम्पूर्ण दक्षिण भारत के राजवंशों का इतिहास जानने में बहुउपयोगी हैं। हम केवल दो राजवंशों का उदाहरण देकर अपनी बात को पुष्ट करना चाहेंगे- गंग वंश एवं होयसल वंश। दक्षिण भारत में गंग वंश अति प्रसिद्ध रहा है। इस वंश का उद्भव ही जैन मुनि के आशीर्वाद एवं निर्देश के फलस्वरूप हुआ। इसकी प्रारम्भिक सूचना के स्रोत केवल जैन अभिलेख हैं। अभिलेखों से ज्ञात होता है कि जैन आचार्य सिंहनन्दी ने इस राजवंश के प्रथम नरेश माधव को उच्च आदर्शों को स्थापित करने का निर्देश दिया था। यह अति महत्त्वपूर्ण है कि राजवंश की स्थापना के समय ही जैन मुनि ने निर्देश दिया था कि अपनी प्रतिज्ञात बात को यदि तुम नहीं करोगे, अगर तुम दूसरों की स्त्रियों को बलात् ग्रहण करोगे, अगर माँस एवं मधु का सेवन करोगे, अगर आवश्यकता वालों को अपना धन नहीं दोगे, अगर युद्ध भूमि से भाग जाओगे तो वंश नष्ट हो जायेगा। कर्नाटक के शिमोगा जिले के कल्लूर गुडु से प्राप्त संस्कृत तथा कन्नड़ मिश्रित अभिलेख के उपर्युक्त घटना के साथ गंग वंश की पूरी वंशावलि दी गई है।