SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन अभिलेखों का वैशिष्टय डॉ० अरुण प्रताप सिंह अभिलेखों का इतिहास लेखन एवं पुनर्निमाण में विशिष्ट महत्त्व है। प्रस्तर, धातु एवं मृण्पात्रों पर लिखे हुए लेखों को तोड़ना-मरोड़ना, विकृत करना या प्रक्षिप्त करना सम्भव नहीं है। उत्कीर्ण सामग्री तत्कालीन सामग्री का यथार्थ बोध कराती है। ईसा पूर्व चतुर्थ शती के बाद से उपलब्ध होने वाले ये अभिलेख भारत के इतिहास के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं। जैन अभिलेखों से भी इतिहास सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण सूचनायें प्राप्त होती हैं। प्रस्तुत लेख में उदाहरणों के माध्यम से इसके महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। -सम्पादक इतिहास लेखन एवं पुनर्निर्माण में अभिलेखों का विशिष्ट महत्त्व है। ये अतीत के ऐसे अमिट स्रोत हैं जिनके प्रक्षिप्त होने की सम्भावना अत्यल्प रहती है। प्राचीन भारत में नाशवान पदार्थों यथा पत्तों, चमड़ों एवं कागजों पर लिखे हुए लेख तो नष्ट हो गये, परन्तु पत्थरों, धातुओं एवं मृण्पात्रों पर उत्कीर्ण अभिलेख कालजयी सिद्ध हुए। ये स्रोत अमिट इसलिए हैं क्योंकि एक बार लिखने के पश्चात् उन्हें पुनः तोड़ना-मरोड़ना या विकृत करना सरल एवं सुगम नहीं था। अतः ये अपने समय की यथार्थ स्थिति का बोध कराते हैं और तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक एवं अन्य सांस्कृतिक सामग्री का यथारूप प्रदर्शन करते हैं। प्रायः चतुर्थ शताब्दी ई० पूर्व के प्रारम्भ से लेकर आगामी कई शताब्दियों तक सम्पूर्ण भारत में अभिलेख उत्कीर्ण किये गये हैं। ये इतिहास के जीवन्त स्रोत हैं। प्रायः सम्पूर्ण भारत में ब्राह्मण, बौद्ध एवं जैन धर्मानुयायियों के लेख प्राप्त हुए हैं। इन अभिलेखों को धर्म के आधार पर बाँटना उचित नहीं प्रतीत होता परन्तु लेख की सुविधा के लिए उन लेखों को जैन अभिलेख कहा गया है जिसका प्रारम्भ जैन तीर्थकरों की प्रार्थना या नमस्कार से तथा अन्त भी इसी तरह होता है; अथवा वे अभिलेख जो पूर्णरूपेण जैन परम्परा के वाहक हैं। ऐतिहासिक सूचना के मूल स्रोत : जैन अभिलेख ऐतिहासिक घटनाओं के मूल स्रोत के रूप में स्थापित हैं। कुछ ऐतिहासिक राजवंशों की सूचना हमें
SR No.525087
Book TitleSramana 2014 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy