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________________ १. जैन रस बोध में धर्मीय भावादर्श : 21 इस प्रकार कहा जा सकता है कि प्रशान्त रस का साहित्य में सर्वप्रथम निरूपण जैन परम्परा में हुआ है। जैन परम्परा का भारतीय काव्य शास्त्र को यह महत्त्वपूर्ण अवदान माना जा सकता है। उद्भट से लगभग आठ सौ वर्ष पूर्व प्रशान्त रस का लक्षण और उदाहरण अनयोगद्वारसत्र में प्राप्त होता है। रसों के क्रम-निर्धारण में भी जैन परम्परा का प्रभाव परिलक्षित होता है और परवर्ती हेमचन्द्र, रामचन्द्र गुणचन्द्र जैसे महान जैन आचार्यों द्वारा अनुयोगद्वारसूत्र का अनुसरण न किया जाना आश्चर्य का विषय है। सन्दर्भ : नाट्यशास्त्र, आचार्य भरत, सम्पा० के० एस० रामस्वामी शास्त्री, गायकवाड ओरिएण्टल सिरीज बड़ौदा, द्विती० परिवर्द्धिन एवं आलोचनात्मक सं० १९५६, अध्याय ५, खण्ड १, पृ० २७२। सहाय, राजवंश 'हीरा', भारतीय साहित्य शास्त्र कोश, बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पटना, १९७३, पृ० ९०५। शृंगारहास्यकरुणा रौद्रवीरभयानका: बीभत्साद्भुतसंज्ञौ चेत्यष्टौ नाट्ये रसाः।। ६/१५, नाट्शास्त्र, पूर्वोक्त, पृ० २६६ ते हयष्टौ रसाः प्रोक्ता द्रुहिणेन महात्मना - ६/६/, वही, पृ० २६७ तेषामुत्पत्ति हेतवश्चत्वारो रसाः। तद्यथा शृंगारो रौद्रो वीरो बीभत्स इति।- वही, पृ० २९५ वही, ६/४०-४२ वही, ६/८३, पृ० ३४१ मुनिना भरतेन तमद्यभर्ता मसता द्रष्टुमनाः सलोकपालः।। २।८, विक्रमोर्वशीयम्, कालिदास, सम्पा० परमेश्वरानन्द शास्त्री, लवपुर, १९६२। ९. इह तु त्वष्टरसायत्ता रसवत्ता स्मृता गिरात्।। १/२९२, काव्यादर्श, दण्डी, अनु० ब्रजरत्नदास, वाराणसी १९८८।। १०. शममपि केचित् प्राहुः पुष्टिर्नाट्येषु नैतस्य।। ४/४४, दशरूपक, धनंजय, अनु० डा० राजबलि पाण्डेय, उर्मिला प्रकाशन, दिल्ली,त्र १९९२। नाट्यशास्त्र, आचार्य भरत, पूर्वोक्त, अध्याय ६, खण्ड १, पृ० ३३२३३५। वही, पृ० ३३२-३३५। १३. श्रृंगारहास्यकरुणरौद्रवीरभयानकाः। १२.
SR No.525087
Book TitleSramana 2014 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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