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________________ 20 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 1/जनवरी-मार्च 2014 जैन टीकाकारों२२ ने भयानक रस के उल्लेख न करने के कारणों पर भी प्रकाश डाला है। उनके अनुसार भयानक रस का अन्तर्भाव रौद्ररस में हो जाता है। वीडनक के स्थान पर भयानक रस के स्वीकार किये जाने का भी जैन टीकाकार ने उल्लेख किया है। उनके शब्दों में लोगों ने व्रीडनक के स्थान पर भयोत्पादक संग्राम आदि के दर्शन से होने वाले भयानक रस को स्वीकार किया है- अस्यस्थाने भयजनकसंग्रामादि-वस्तु-दर्शनादिप्रभवः भयानको रसः पठ्यतेअन्यत्र। स च रौद्ररसान्तर्भावविवक्षणात् पृथक् नोक्ताः। हास्यरस (२) को सातवां स्थान२३ देकर उसे गौण स्थान देना भी जैन परम्परा के अनुरूप है। भाषा समिति एवं वचन गुप्ति को आचार में पालन करना आवश्यक है। भाषा समिति सम्यग्भाषा-सत्य, हितकारी, परिमित और सन्देह रहित भाषण तथा वचनगुप्ति-वाचिक क्रिया के प्रत्येक प्रसंग पर या तो वचन का नियमन करना या मौन धारण करना वचन गुप्ति है। समिति में सत्क्रिया के प्रवर्तन की मुख्यता है और गुप्ति में असत्क्रिया के निषेध की मुख्यता। तात्पर्य यह कि वाचिक क्रिया और वाच्य-विषय पर पूर्ण नियन्त्रण जैन परम्परा में अपेक्षित है। जबकि हास्य रस रूप, वय, वेष और भाषा की विपरीतता से उत्पन्न होता है। हास्य रस मन को हर्षित करने वाला है और प्रकाश-मुख, नेत्र, उसका लक्षण है। उन्मुक्त या उन्मत्त व्यवहार पर आधारित हास्य रस को जैन परम्परा में अपेक्षाकृत गौण स्थान प्राप्त होना स्वाभाविक है। प्रशान्त रस२४ को दोनों परम्पराओं में अन्तिम नवम क्रम प्रदान किया गया है। कारण स्पष्ट है कि इसे रस में बाद में सम्मिलित किया गया। प्रशान्त या शान्त रस की उत्पत्ति और लक्षण बताते हुए कहा गया है- निर्दोष (हिंसादि) दोषों से रहित, मन की समाधि (स्वस्थता) से और प्रशान्त भाव से जो उत्पन्न होता है और अविष्कार जिसका लक्षण है उसे प्रशान्त रस जानना चाहिए। प्रशान्त रस सूचक उदाहरण इस प्रकार है- सद्भाव के कारण निर्विकार, रूपादि विषयों के अवलोकन की उत्सुकता के परित्याग से उपशान्त एवं क्रोधादि दोषों के परिहार से प्रशान्त, सौम्य दृष्टि से युक्त मुनि का मुखकमल वास्तव में अतीव श्रीसम्पन्न होकर सुशोभित हो रहा है।
SR No.525087
Book TitleSramana 2014 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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