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________________ जैनागमों में स्वप्न विज्ञान : ७५ फल१५ : प्रथम स्वप्न के फलस्वरूप महावीर ने महामोहनीय कर्म को समूल नष्ट किया। दूसरे स्वप्न के फलस्वरूप श्रमण महावीर ने शुक्लध्यान प्राप्त करके विचरण किया। विचित्र पंखों वाले पुंस्कोकिल के स्वप्न का फलितार्थ यह हुआ कि श्रमण महावीर ने स्वसमय-परसमय के विविध विचारों से युक्त द्वादशांग गणिपिटक का प्ररूपण किया। चतुर्थ स्वप्न के फलस्वरूप महावीर ने सागार (गृहस्थ) व अणगार (साधु) धर्म को प्रज्ञप्त किया। पाँचवें स्वप्न का फल यह है कि महावीर ने चतुर्विधसंघ रूपी तीर्थ की स्थापना की। छठे स्वप्न का यह फल हुआ कि श्रमण महावीर ने चार प्रकार के देवों की प्ररूपणा की। सातवें स्वप्न के फलस्वरूप महावीर ने अनादि-अनन्त संसार-सागर को पार किया। आठवें स्वप्न के फलस्वरूप श्रमण महावीर को अनंत, अनुत्तर, निर्व्याघान्त प्रतिपूर्ण श्रेष्ठ केवलज्ञान-केवलदर्शन की प्राप्ति हुई। नवें स्वप्न के फलस्वरूप श्रमण महावीरस्वामी उदारकीर्ति, स्तुति, प्रशंसा व यश को प्राप्त हुए। १०. दसवें स्वप्न का फल यह हुआ कि श्रमण महावीर ने देवों, मनुष्यों और असुरों की परिषदों के मध्य धर्मोपदेश दिया। राजा चन्द्रगुप्त द्वारा देखे गये सोलह स्वप्न व उनका फल'६ : मगध राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र में राजा चन्द्रगुप्त ने रात्रि के अंतिम प्रहर में अत्यन्त अनोखे व विचित्र से सोलह स्वप्न देखे, यथा प्रथम स्वप्न में कल्पवृक्ष की शाखा भंग होते हुए देखी। द्वितीय स्वप्न में अकाल में अस्त होते हुए सूर्य को देखा। छलनी जैसे छिद्रों से युक्त चंद्रमा देखा। भूत-भूतनी को नाचते हुए देखा।
SR No.525078
Book TitleSramana 2011 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2011
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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