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________________ १२. ७६ : श्रमण, वर्ष ६२, अंक ४ / अक्टूबर-दिसम्बर २०११ बारह फण वाला सर्प देखा। देवविमान को वापस लौटते हए देखा। अशुचि स्थान पर कमल की उत्पत्ति देखी। घोर अंधकार में जुगनू की भाँति चमकती-बुझती अग्नि देखी। तीन दिशाओं में सूखा समुद्र देखा। दसवें स्वप्न में कुत्ते को सोने की थाली में खाते देखा। ग्यारहवें स्वप्न में बंदर को हाथी के ऊपर बैठे हुए देखा। बारहवें स्वप्न में समुद्र को अपनी सीमाओं से बाहर जाते देखा। १३. तेहरवें स्वप्न में देखा कि छोटे बछड़े बहुत भारी रथ को खींच रहे हैं। १४. चौदहवें स्वप्न में मटमैली रत्न-राशि देखी। १५. पन्द्रहवें स्वप्न में एक राजकुमार को पाड़े (भैंस के बच्चे) की सवारी करते देखा। १६. अंतिम स्वप्न में बिना महावत के हाथियों को लड़ते देखा। फल : श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाहु ने राजा चंद्रगुप्त के सोलह स्वप्नों को सुनकर कहा, “राजन् ! ये स्वप्न भविष्य में होने वाले घोर अनिष्ट के सूचक हैं।" उन्होंने ही अपने ज्ञानोपयोग से इन स्वप्नों का फल बतलाया पहले स्वप्न का तात्पर्य भविष्य में कोई भी राजा श्रमण दीक्षा ग्रहण नहीं करेगा। दूसरे स्वप्न का फलितार्थ पाँचवे आरे में केवल ज्ञान नहीं होगा। तीसरे स्वप्न के फलस्वरूप पंचम आरे में उज्ज्वल भावना वाले भी छिद्रान्वेषी होंगे। चतुर्थ स्वप्न का फल यह होगा कि मिथ्यादृष्टि देवों, कुगुरु व कुधर्म की अधिक मान्यता होगी। पाँचवें स्वप्न का तात्पर्य है कि आगत समय में बारहवर्षी भयंकर दुष्काल * * 3 पड़ेगें। छठे स्वप्न का अर्थ बताया कि भरत क्षेत्र में देवताओं, विद्याधरों, चारण मुनियों तथा सम्पूर्ण लब्धियों का लोप हो जायेगा। सातवें स्वप्न के अनुसार वणिक् धर्म होगा, मत अधिक होंगे,आपसीखींचतान ज्यादा होगी। चमकती-बुझती अग्नि दर्शन का मतलब धर्मोद्योत कम होगा, मिथ्याआडम्बर अधिक होंगे। i
SR No.525078
Book TitleSramana 2011 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2011
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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