SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५० : श्रमण, वर्ष ६२, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर - २०११ जैन अङ्ग साहित्य में भी ऐसे ही अनुशासित व संस्कारित पारिवारिक सदस्यों का उल्लेख मिलता है जो प्रेमपूर्वक रहते थे। अङ्ग साहित्य के अनुसार तत्कालीन समाज में संयुक्त परिवार-प्रथा प्रचलित थी जिसके अन्तर्गत माता-पिता से लेकर सगे-सम्बन्धी व दास-दासी आते थे। मानव के विकास के साथ-साथ परिवार में सहयोग, त्याग, उत्कर्ष एवं बलिदान तथा परस्पर उन्नति एवं सहकार की भावना उत्तरोतर बलवती होती गई जिससे समाज में संयुक्त परिवार प्रणाली का सूत्रपात हुआ। जैन अङ्ग साहित्य के अनुसार परिवार में माता-पिता, पुत्र-पुत्री, भाई-बहन और पति-पत्नी के मध्य परस्पर प्रेमपूर्ण सम्बन्ध होते थे। इनके साथ-साथ पुत्रवधुएँ, पुत्री, भगिनी, माता की बहिनें, महामाता, महापिता, जमाता, मामामामी, दास-दासी, मित्र, सगे-सम्बन्धी आदि भी साथ-साथ रहते हुए समस्त पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन करते थे। एक ही परिवार में तीन पीढ़ी के लोग सरलता से रहते थे। वयोवृद्ध या बड़ा सदस्य मुखिया होता था। परिवार के सभी सदस्य इसके प्रति आदर भाव रखते थे। सामान्य रूप से विभिन्न कुलों में रहने वाले सदस्यों को भिन्न-भिन्न कुल, परिवार, वंश या जाति का सूचक माना जाता था। जैन अंग साहित्य में कई स्थानों पर व्यक्ति के जातिसम्पन्न, उत्तम मातृपक्ष तथा पितृपक्ष से सम्पोषित परिवार में जन्म लेते हुए व्यक्त करने की परम्परा उसके गोत्र व वंश विषय मत की पुष्टि करता है। निशीथचूर्णि में परिवार के सभी सदस्यों को नाभि के द्वारा (नालबद्ध) सम्बन्धित बताते हुए उन्हें परस्पर सम्बन्धी कहा गया है। विपाकसूत्र में सोलह सदस्यों का उल्लेख मिलता है जो आपस में रक्त सम्बन्धी होते थे। लघुपिता (चाचा), लघुमाता (चाची), महापिता (पिता के ज्येष्ठ भ्राता-ताऊ), महामाता (ताई), पुत्र, पुत्रवधू, जमाता, लड़कियों, नव्ताओं (पौत्रों व दौहित्रों), लड़के और लड़कियों की पुत्रियाँ (पौत्रियों और दौहित्रियों), नृप्तृकापतियों (पौत्रियों व दौहित्रियों के पतियों), पिता की बहिनों के पति (फूफा), पिता की बहिनें (बुआ), माता की बहिनें (मौसी), माता की बहिनों के पति (मौसा), मामा और उनकी पत्नियाँ, भाई-भाभी, दास-दासी, मित्र तथा सगे-सम्बन्धी व परिजन। जैन अङ्ग साहित्य के अनुसार परिवार दो प्रकार के होते थे। परिवार के सदस्य व उनके सम्बन्धपरिवार में माता-पिता न केवल भारतीय संस्कृति में बल्कि विश्व की प्रत्येक संस्कृति में माता-पिता को सम्मानजनक व पूजनीय स्थान प्राप्त रहा है। किसी भी पारिवारिक संस्था की आधारशिला माता-पिता होते हैं जिनपर पारिवारिक सदस्यों की नींव आधृत रहती
SR No.525077
Book TitleSramana 2011 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2011
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy