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________________ अङ्ग साहित्य में वर्णित पारिवारिक व्यवस्था का स्वरूप श्वेता सिंह इस शोध-पत्र के माध्यम से अङ्ग साहित्य में वर्णित तत्कालीन पारिवारिकव्यवस्था का चित्रण किया गया है। इसमें मुख्य रूप से आचाराङ्गसूत्र, स्थानाङ्गसूत्र, ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृद्दशा एवं विपाकसूत्र से सन्दर्भ उद्धृत किया गया है। इन उद्धरणों के माध्यम से संयुक्त परिवारव्यवस्था को रेखाङ्कित किया गया है। तत्कालीन पारिवारिक-व्यवस्था को समझने के लिए आलेख की उपयोगिता है। - सम्पादक जैन अङ्ग साहित्य जैन संस्कृति की प्राचीनतम व अनमोल निधि है। जैन संस्कृति में इसे वही स्थान प्राप्त है, जो ब्राह्मण संस्कृति में वेद, बौद्ध संस्कृति में पिटक तथा इसाई संस्कृति में बाइबिल को प्राप्त है। इसकी विषयगत विशेषता एवं विस्तार के कारण इसे द्वादशाङ्ग, अङ्ग प्रविष्ट आदि नामों से भी संज्ञापित किया गया है। सामाजिक अध्ययन की दृष्टि से देखा जाय तो इसमें समाज को आधार प्रदान करने वाले सभी पक्षों परिवेश, वर्ण, जाति-व्यवस्था, पारिवारिक संस्था आदि विस्तृत उल्लेख मिलता है। प्रस्तुत शोध पत्र में अङ्ग साहित्य में वर्णित उद्धरणों के आधार पर पारिवारिक संस्था का विवेचन किया गया हैमानव निर्मित सामाजिक संस्थाओं में परिवार एक ऐसा आधार है, जिसके बिना गृहस्थ जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। मनुष्य का उत्कर्ष भी उसके पारिवारिक जीवन के माध्यम से ही होता है। वास्तव में परिवार मानव निर्मित सामाजिक संस्था की मूलभूत इकाई ही नहीं बल्कि आधारशिला भी है जिसमें मनुष्य की जन्म से लेकर मृत्यु तक की सारी अवस्थाएँ व्यतीत होती हैं। भारतीय संस्कृति में परिवार को मानव समाज के विकास एवं प्रगति का द्योतक माना जाता है। परिवार एक ऐसा प्राथमिक समूह है जिसमें पति-पत्नी, माता-पिता, भाई-बहन, ननद-देवर, सास-श्वसुर आदि संयुक्त रूप से प्रेमपूर्वक एक ही छत के नीचे निवास करते हैं जो आपस में रक्त सम्बन्धी भी होते हैं।'
SR No.525077
Book TitleSramana 2011 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2011
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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