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साहित्य-सत्कार
पुस्तक-समीक्षा जैन श्राविकाओं का वृहद् इतिहास (आदिकाल से वर्तमान युग तक) लेखिका एवं सम्पादिका- साध्वी डॉ. प्रतिभा श्री 'प्राची', प्रकाशक- सिविल लाईन, स्थानकवासी जैनसंघ लुधियाना (पंजाब) एवं प्राच्य विद्यापीठ, दुपाड़ा रोड, शाजापुर (म.प्र.), प्र०सं० ई. २०१०, मूल्य. रू.५५०/-, पृ०सं०- ७२४ । यह विशालकाय ग्रन्थ डॉ. सागरमल जैन जी के मार्गदर्शन में पी-एच०डी० हेतु प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध 'चतुर्विध जैन संघ में श्राविकाओं का योगदान' का पुस्तक के रूप में प्रकाशन है। इस ग्रन्थ में प्रागैतिहासिक काल से लेकर आधुनिक काल तक की प्रमुख श्राविकाओं का विवेचन है। इसमें आगम-साहित्य, आगमिक व्याख्यासाहित्य, चरित काव्य, कथा काव्य, पुराण, प्रबन्ध-साहित्य के साथ ऐतिहासिक ग्रन्थों, शिलालेखों, गन्थ प्रशस्तियों एवं पुरातात्विक साक्ष्यों को आधार बनाया गया है। आचार्य श्री रत्नाकर सूरीश्वर जी म.सा० का इस ग्रन्थ को विशेष आशीर्वाद प्राप्त है। इस ग्रन्थ पर पू० डॉ० विशाल मुनि जी म.सा०, श्रमणी डॉ. विजय श्री आर्या, डॉ. धर्मचन्द जैन एवं प्रो० सुदर्शन लाल जैन जी का विशेष अभिमत उल्लेखनीय है। विद्वज्जनों ने इस ग्रन्थ को एक अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण कृति करार दिया है। संकलनात्मक होते हुए भी यह ग्रन्थ ऐतिहासिक अभिलेख जैसा है, जो सात अध्यायों में विभक्त है। श्राविकाओं के इतिहास से सम्बन्धित प्रामाणिक स्रोतों का अभाव तथा अपर्याप्त सामग्री के कारण उनके सम्पूर्ण योगदानों को संग्रहीत करना एक दुःसाध्य कार्य है। तथापि इस ग्रंथ में यत्र-तत्र बिखरी हुई श्राविकाओं के जीवन एवं कृतित्व सम्बन्धी सूचनाओं एवम् उनके सांस्कृतिक, धार्मिक एवं सामाजिक अवदानों को लिपिबद्ध करने का एक अनूठा प्रयत्न किया गया है। प्रथम अध्याय में श्राविका सम्बन्धी आचार-व्यवहार का वर्णन है तथा साहित्यिक एवं अभिलेखीय स्रोतों के आधार पर प्रागैतिहासिक काल से लेकर वर्तमान युग तक की श्राविकाओं द्वारा जैन संघ को दिये गए योगदानों की चर्चा की गयी है। लगभग ७८ चित्रों के माध्यम से श्राविकाओं के अवदानों का भी चित्रांकन है। द्वितीय अध्याय में प्रागैतिहासिक प्रथम तीर्थङ्कर से बाईसवें तीर्थङ्कर कालीन विविध