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| जैन जगत्
डॉ. टी.सी. कोठारी को डी.लिट् की उपाधि डॉ. टी.सी. कोठारी, अध्यक्ष : ओम् कोठारी ग्रुप ऑफ कम्पनीज, को आगरा विश्वविद्यालय से इतिहास में डी.लिट. की उपाधि प्रदान की गयी। आपके डी.लिट्. का विषय था 'नौवीं-दसवीं शताब्दी के जैन पुराणों के परिप्रेक्ष्य में भारत का सांस्कृतिक इतिहास'। ८१ वर्ष की उम्र में आपने यह कार्य करके एक कीर्तिमान स्थापित किया है। इसके लिए पार्श्वनाथ विद्यापीठ की ओर से आपको बधाई। श्री दीपेश मुनि को पी-एच.डी. की उपाधि युवा मनीषि श्री दीपेश मुनि को जैन विद्या और प्राकृत में 'वास्तु एवं ज्योतिष विज्ञान : जैन आगमों के आलोक में विषयक शीर्षक पर सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर से पी-एच.डी. की उपाधि प्रदान की गयी। पार्श्वनाथ विद्यापीठ की ओर से मंगलकामना। प. पू. मुनि सुबुद्धसागर जी की समाधि मुनि श्री सुबुद्धसागर जी ने दिनांक १४ नवम्बर २०१० को नातेपुते, जिला-सोलापुर (महा०) में यम संलेखनापूर्वक नश्वर शरीर का त्याग किया। हमारी प्रणामांजलि उन्हें समर्पित है। आचार्य श्री सन्मतिसागर जी का समाधिमरण तपस्वी सम्राट् आचार्य श्री प०पू० सन्मतिसागर जी ने २४ दिसम्बर २०१० को मुम्बई में इंगिनिमरण नामक समाधि को स्वीकार करके इस नश्वर शरीर का परित्याग किया। आपकी समाधि होने से जैन जगत् की अपूरणीय क्षति हुयी है। पार्श्वनाथ विद्यापीठ उन्हें हार्दिक प्रणामांजलि समर्पित करता है। वैशाली में कुन्दकुन्द व्याख्यानमाला सम्पन्न दिनांक २० जनवरी २०११ को प्राकृत जैन शास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान, वैशाली में आचार्य कुन्दकुन्द व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता के रूप में डॉ० शीतल.चन्द जैन (उदयपुर), प्रो० राजीव रंजन सिंह (वाराणसी), प्रो० वीर सागर जैन (नई दिल्ली), प्रो० रमेश कुमार रवि (मुजफ्फरपुर) तथा संस्थान के निदेशक डॉ. ऋषभ चन्द जैन ने आचार्य कुन्दकुन्द के योगदान पर गम्भीर चिन्तन प्रस्तुत किया।