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________________ विद्यापीठ के प्राङ्गण में : 143 भी कार्यालय में अनावृत किया गया। कार्यक्रम में उपस्थित कुलपति द्वय ने जैन विश्वकोश के प्रथम बार प्रकाशन पर पार्श्वनाथ विद्यापीठ को बधाई दी। इस अवसर पर विश्वकोश परियोजना के प्रमुख सम्पादक प्रो० सागरमल जैन भी उपस्थित थे उन्होंने सप्तखण्डीय विश्वकोश की समूची योजना पर प्रकाश डाला तथा बताया कि शीघ्र ही जैन भाषा और साहित्य का दूसरा खण्ड (VOL. II- LANGUAGE AND LITERATURE) प्रकाशित होगा। लेखकों की तरफ से प्रो० मारुति नन्दन प्रसाद तिवारी ने अपना वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि पार्श्वनाथ विद्यापीठ ने इस विश्वकोश के लेखन में हमें पूरी स्वतंत्रता तथा हर सम्भव सहायता दी, इसके लिए हम विद्यापीठ के आभारी हैं। मुख्य अतिथि प्रो० धीरेन्द्र पाल सिंह ने प्रथम बार इस तरह के विश्वकोश के प्रकाशन पर विद्यापीठ को तथा सम्बन्धित विद्वान् लेखकों को बधाई दी। प्रो० चन्द्रदेव सिंह ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में पार्श्वनाथ विद्यापीठ द्वारा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के माध्यम से पी-एच०डी० करने के इच्छुक छात्रों के पंजीकरण में आने वाली बाधाओं की तरफ कुलपति, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का ध्यान आकर्षित किया और इस सम्बन्ध में हर सम्भव सहायता देने का अनुरोध किया। इस अवसर पर अन्य विश्वविद्यालयों से भी अनेक विद्वान् उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन विद्यापीठ के निदेशक प्रो० सुदर्शन लाल जैन ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन विद्यापीठ की प्रबन्ध-समिति के मंत्री श्री इन्द्रभूति बरड़ ने किया। नवकार मन्त्र की विकासयात्रा पर व्याख्यान दिनांक २० जनवरी २०११ को पार्श्वनाथ विद्यापीठ के पूर्व निदेशक डॉ. सागरमल जैन ने नवकार मंत्र की कई दृष्टियों से व्याख्या करते हुए इसके विकास तथा महत्त्व पर महत्त्वपूर्ण व्याख्यान दिया। कार्यक्रम का संचालन संस्था के निदेशक प्रो० सुदर्शन लाल जैन ने किया। डॉ० एस०पी० पाण्डेय, डॉ० अशोक कुमार सिंह, डॉ० (श्रीमति) मनोरमा जैन आदि श्रोताओं ने व्याख्यान पर जो प्रश्न किए उनके समुचित उत्तर डॉ० सागरमल जी ने दिए। मंगलाचरण प०पू० साध्वी श्री भव्यानन्द जी म.सा० ने किया। Lecture on 'From a moment of eternity : Jaina Philosophy of Time as a meeting point of Science and Religion? On 18th February 2011 a lecture was delivered by Ana Bajzelj Bevelacqua, Deptt. of Philosophy, Faculty of Arts, University of Ljubljana on ‘From a moment of eternity: Jaina philosophy of Time as a meeting point of Science and Religion'. Renowned scholar of
SR No.525075
Book TitleSramana 2011 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2011
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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