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142 : śramana, Vol 62, No. 1 January March 2011
६ साध्वियों के साथ गोंडल स्थानकवासी समाज की विदुषी साध्वी वीरमति महासतीजी भी ससंघ उपस्थित थीं । संस्था के सहनिदेशक डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय ने साध्वी श्री का जीवन परिचय दिया तथा अनेक वक्ताओं ने साध्वी श्री के विषय में अपने उद्गार व्यक्त किए। अतिथियों ने साध्वी भव्यानन्दजी का गुणानुवाद करते हुए उनके ४१ वें दीक्षा दिवस पर उन्हें बधाइयाँ दीं। स्थानकवासी महासती वीरमतीजी ने साध्वी भव्यानन्दजी को आशीष देते हुए उनके दीर्घायु होने की कामना की। कार्यक्रम का संचालन पार्श्वनाथ विद्यापीठ के निदेशक प्रो० सुदर्शन लाल जैन ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन विद्यापीठ के प्रबन्ध समिति के मन्त्री श्री इन्द्रभूति बरड़ ने किया। भंसालीजी की दो नतनियों ने गणेश वन्दना की मोहक प्रस्तुति की। कार्यक्रम की समाप्ति पर विद्यापीठ की तरफ से स्वामी वात्सल्य का आयोजन किया गया।
जैन विश्वकोश का लोकार्पण खण्ड - १
(ENCYCLOPAEDIA OF JAINA STUDIES, VOL. 1) जनवरी १६, २०११, सायं ५.०० बजे पार्श्वनाथ विद्यापीठ द्वारा प्रथमत: प्रकाशित जैन विश्वकोश (ENCYCLOPAEDIA OF JAINA STUDIES ) के प्रथम खण्ड जैन स्थापत्य और कला ( JAINA ART & ARCHITECTURE) के लोकार्पण / विमोचन का कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस खण्ड का लेखन एवं सम्पादन जैन कला इतिहास के तीन मूर्धन्य विद्वानों- प्रो० मारुति नन्दन प्रसाद तिवारी, कला इतिहास विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, प्रो० कमल गिरि, पूर्व प्रोफेसर, कला इतिहास विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय तथा प्रो० हरिहर सिंह, प्राचीन इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने किया है। लोकार्पण समारोह के मुख्य अतिथि थे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो० धीरेन्द्र पाल सिंह तथा अध्यक्षता की प्रो० चन्द्रेव सिंह, कुलपति, इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय जनजाति विश्वविद्यालय, अमरकंटक ने। कार्यक्रम का प्रारम्भ प०पू० साध्वी भव्यानन्दजी के मंगलाचरण से हुआ। समारोह में समागत अतिथियों का स्वागत् पार्श्वनाथ विद्यापीठ के प्रबन्ध समिति के अध्यक्ष डॉ० शुगन चन्द जैन ने किया। डॉ० जैन ने पार्श्वनाथ विद्यापीठ द्वारा प्रारम्भ की जाने वाली नई योजनाओं से सभा को परिचित कराया। डॉ० शुगन चन्द जैन ने बताया कि श्रमण संघ के आचार्य परम पूज्य शिवमुनिजी का आशीर्वाद अब हमारे साथ है। उन्होंने आचार्यश्री की संगठन शक्ति एवं शिक्षा के प्रति उनकी दूरदृष्टि की प्रशंसा करते हुए विद्यापीठ को आचार्यश्री द्वारा प्रकल्पित ध्यान का सम्यक् अनुशीलन केन्द्र बनाने पर जोर दिया और बताया कि बहुत शीघ्र हम आचार्यश्री द्वारा प्रकल्पित ध्यान का उच्चीकृत कोर्स विद्यापीठ में प्रारम्भ करेंगे। इस अवसर पर प०पू० आचार्य श्री शिवमुनिजी का एक विशाल चित्र