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xii : श्रमण, वर्ष ६२, अंक १ / जनवरी-मार्च-२०११
६३ शलाकापुरुषों में २४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ वासुदेव, ९ बलदेव तथा ९ प्रतिवासुदेवों का वर्णन किया गया है। इसके बाद पुराणों- (महापुराण, आदिपुराण) में तीर्थंकरों के जीवन चरित का वर्णन मिलता है। बाद में १४वीं शताब्दी में आचार्य हेमचन्द्र ने त्रिशष्टिशलाकापुरुषचरित नामक विशेष कृति का प्रणयन किया जिसमें सभी ६३ शलाकापुरुषों का जीवन चरित उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त परिशिष्टपर्वन, महावीरचरित, स्थविरावलीचरित, धर्मशर्माभ्युदय, प्रभावकचरित, प्रबन्धकोश, आख्यानकमणिकोश, कहावली, पुरातनप्रबन्धसंग्रह, प्रबन्धचिन्तामणि, सोमसौभाग्यकाव्य आदि ऐसे ग्रंथ हैं जिनके प्रमुख विषय चरितकथाएं है। ८. जैन विकासः धार्मिक एवं विकासगत चुनौतियां प्रोफेसर नाथन आर. वी. लोएन ने जैनों द्वारा किये जा रहे विकास के कार्यों में धर्म की प्रतिबद्धता को एक अलग नजरिये से देखने का प्रयास किया है। स्कूल, हास्पीटल, विश्वविद्यालय आदि का निर्माण तथा विकास के अन्य कार्य समाज में सम्मान पाने के लिये किये जाते हैं जो जैन धर्म के सिद्धान्तों के सर्वथा अनुरूप नहीं है। जैन धर्म तीर्थंकरों के समय से ही हमेशा मानवता से जुड़ा रहा है। सभी तीर्थंकरों ने मानव का ही प्रतिनिधित्व किया है। प्रो० लोएन ने इस लेख में पं. जुलकिशोर मुख्तार द्वारा रचित 'मेरीभावना' नामक भजन का भी उल्लेख किया है जो जैनों द्वारा चलाये जा रहे अधिकांश स्कूलों की प्रार्थनाओं में गाया जाता है। मेरी भावना दूसरों के कल्याण का संदेश देती है जिसमें सुशासन, सामाजिक न्याय, रोगादि से मुक्ति, मानवजीवन के उत्थान की भावना अनुस्यूत है। जैन भारत के विकास में एक महत्वपूर्ण रोल अदा करते हैं। निःसन्देह जैन तेजी से विकास कर रहे हैं। ९. तीन सौदागरों की नीतिकथा श्री जोसेफ बार्सटोसेक ने उत्तराध्ययन में आये हुए तीन सौदागरों की कथा की तुलना न्यू टेस्टामेन्ट (मैथ्यू और लुकास आदि की अन्य कहानियों) के तीन दासों की कथा से करते हुए यह बताने का प्रयास किया है कि यदि आप निम्न योनि में पैदा हुए हैं तो आप अपने सद्प्रयासों से कर्मबन्धन-मुक्त होकर सिद्धशिला की ऊंचाई तक पहुंच सकते हैं। उत्तराध्ययन की कथा में दर्शाया गया है कि तीन सौदागर यात्रा पर एक निश्चित पूंजी के साथ निकलते हैं। प्रथम सौदागर जितनी पूंजी ले गया था उसे गंवाकर लौटता है, दूसरा जितना ले गया था वह उतना ही लौटाकर लाता है और तीसरा जो कुछ ले गया था उससे अधिक कमा कर लौटता है। यहां पूर्व धन (कैपिटल) मानव जीवन है, अधिक कमाना स्वर्ग है तथा नुकसान उठाना नरक है। जैन दर्शन के अनुसार जीवन आपके पूर्व जन्मों की अपनी कमाई है। यह किसी की देन नहीं है। जो सौदागर अपनी