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सम्पादकीय :xiii
पूंजी गंवा कर लौटता है वह घातिया कर्मों के कारण निम्न योनि में उत्पन्न होता है, वह व्यक्ति जो अपनी पूंजी बचाकर लौटा लाता है वह मनुष्य जन्म पाता है। तीसरा सौदागर जो अपनी पूंजी बढ़ाकर लाता है वह शुभ एवं अच्छे गुणों के कारण सुख दुःख का नाश करता है। न्यू टेस्टामेन्ट की कथा कुछ इसी प्रकार की है जिसमें एक व्यक्ति जो यात्रा पर जाता है अपने तीन दासों को बुलाता है उन्हें अलग-अलग धन देता है तथा उनके बुद्धि की परीक्षाकर उन्हें तदनुसार पारितोषिक देता है। १०. भारतीय चिन्तन में अहिंसा की अपरिहार्यता सुश्री कोयला कीहू ने इस लेख में यह दर्शाने का प्रयास किया गया है कि अहिंसा का जो रूप आज हमारे सामने है- चाहे सिद्धान्त हो में या व्यवहार में हो, वह वस्तुतः श्रमण परम्परा की देन है। धार्मिक अवधारणा के रूप में जैन दर्शन ने. अहिंसा को अपनाया। अहिंसा आर्यों की विरासत है। लेखिका का विचार है कि वैदिकों द्वारा यज्ञ-यागादि में की जाने वाली हिंसा से मुक्ति दिलाने के लिये ही पार्श्वनाथ, महावीर और गौतम बुद्ध जैसे महापुरुषों का आविर्भाव हुआ। यहां यह ध्यातव्य है कि पार्श्वनाथ आदि का अवतार नहीं हुआ है अपितु वे क्रमशः अपने सद्कर्मों से ईश्वरत्व को प्राप्त हुए हैं। जैन धर्म के साधकों ने अनेकविधियों से अहिंसा के सिद्धान्त का पोषण किया है, उसकी अवधारणा को पूर्ण बनाया तथा उसे अपने जीवनव्यवहार में उतारा है चाहे वह साधु-साध्वी हों या श्रावक। ११. जैन श्रमण परम्परा में अरण्यवास : समकालीन सन्दर्भ में ईसा पूर्व पाचवीं शती नयी धार्मिक क्रान्ति के काल के रूप में जानी जाती है। उस समय लोगों का उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति था। साधक को ब्रह्मचर्य व्रत का निर्विघ्न पालन करने के लिये घर-द्वार या सामाजिक जीवन छोड़कर यायावर साधु के रूप में जंगलों में निवास करना पड़ता था। ऐसे साधुओं को श्रमण कहा गया। जैन एवं बौद्ध इसी परम्परा के अंग हैं। श्रमण आन्दोलन ने साधकों को श्रावकों से अलग अरण्यवास की प्रेरणा दी जहां सामाजिक मूल्य, परिग्रह, समाजिक स्तर, परिवार सबका सर्वथा अपलाप हो जाता था। साधकों के मानव बस्तियों से दूर रहने को अरण्यवास, विविक्त शैय्यासन, जिनकल्प आदि का नाम दिया गया। इस लेख की लेखिका श्रीमती क्रेट क्रैग ने महावीर से लेकर आज तक की श्रमण परम्परा द्वारा किये गये तप आदि के अभ्यास का मूल्यांकन कथा साहित्य के आलोक में करने का प्रयास किया है जिसमें उसने श्रवणबेलगोला में भगवान् बाहुबली की तपसाधना का उल्लेख किया है। बाहुबली के शरीर में लता, वल्लरियां आदि आवेष्टित हो गयी थीं। लेखक का मानना है कि त्यागपूर्ण जीवन के लिये अरण्यवास का वर्णन करने वाली कथाएं आज भी प्रासंगिक हैं।
- सुदर्शन लाल जैन