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________________ ३६ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक ४/ अक्टूबर-दिसम्बर-१० तथा दैहिक व्यापारों से आत्मा सर्वथा पृथक् हो जाता है तब इस ध्यान द्वारा अवशेष चार अघातिकर्म- वेदनीय, नाम, गोत्र तथा आयु भी नष्ट हो जाते हैं।२६ शुक्लध्यान के चार लक्षण बतलाये गये हैं—२७ विवेक- देह से आत्मा की भिन्नता, (२) व्युत्सर्ग- नि:संग भाव से शरीर आदि सभी उपकरणों से ममता हटा लेना, (३) अव्यथा- पीड़ा तथा कष्ट आने पर आत्मस्थता नहीं खोना, (४) असंमोह- देव आदि द्वारा रचित माया जाल में तथा सूक्ष्म भौतिक विषयों में संमूढ या विभ्रान्त न होना। शुक्लध्यान के चार आलम्बन इस प्रकार कहे गये हैं- (१) क्षान्तिक्षमाशीलता। (२) मुक्ति- लोभ आदि के बन्धन से उन्मुक्तता। (३) आर्जवऋजुता, सरलता, निष्कपटता। (४) मार्दव- मृदुता-कोमलता, निरभिमानता।२८ शुक्लध्यान की चार अनुप्रेक्षायें बतलाई गई हैं। वे इस प्रकार हैं (१) अपायानुप्रेक्षा- आत्मा द्वारा आचरित कर्मों के कारण उत्पद्यमान अपाय- अनर्थों के सम्बन्ध में पुन:-पुन: चिन्तन। (२) अशुभानुप्रेक्षा- संसार के अप्रशस्त रूप का चिन्तन, (३) अनन्तवृत्तितानुप्रेक्षा- संसार चक्र की अनन्त काल तक चलते रहने की वृत्ति (स्वभाव) पर पुनः-पुनः चिन्तन। (४) विपरिणामानुप्रेक्षा- वस्तु जगत् की परिवर्तनशीलता पर चिन्तन करना।२९ इनमें से आर्त और रौद्र इन दो ध्यानों को अप्रशस्त, अपध्यान कहा गया है। ये ध्यान कर्मबन्ध का हेतु होने से तथा भवभ्रमण एवं दुःख का कारण होने से हेय हैं। जबकि अन्तिम दो ध्यान (धर्म और शुक्ल) प्रशस्त हैं, आचरणीय हैं, ग्राह्य हैं, ये मोक्षमार्ग को प्रशस्त करते हैं।३१ । यदि इन चारों के सामान्यातिसामान्य (स्थूलतम) स्वरूप पर विचार करें तो हम पायेंगे कि प्रथम दो ध्यान नकारात्मक विचार श्रृंखला के द्योतक हैं जो स्वास्थ्य तन्त्र को भी दुष्प्रभावित करते हैं। Dr. William Boericke 37467 Yanto Homeopathic Materia Medica, पृष्ठ ८ पर लिखते हैं कि छोटी से छोटी प्रत्येक बीमारी, भय, चिन्ता तथा परेशानी से जुड़ी हुई होती है३२ तथा एक अन्य स्थान, पृष्ठ ३४२ पर वे एक बीमारी के लक्षणों में अश्रुपात, आहे भरना, सिसकियाँ भरना, विषादग्रस्त होना, बात न करना, शोचनता पूर्ण होना, उदास होना, आदि गिनाये हैं।३३ इसी प्रकार अवसाद (Depression) नामक बीमारी के लक्षण से कौन अपरिचित है। इसके मूल में भी एक प्रकार का आर्तध्यान ही है। यदि इन ऊपर कथित लक्षणों को तथा आर्तध्यान के लक्षणों को मिलायें
SR No.525074
Book TitleSramana 2010 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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