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________________ ध्यान : एक अनुशीलन : ३७ तो समानता स्पष्ट उद्घाटित हो जाती है। तात्पर्यार्थ केवल इतना है कि न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से बल्कि शरीर-विज्ञान की दृष्टि से भी तथा मनोविज्ञान की दृष्टि से भी नकारात्मक ध्यान अथवा अपध्यान त्याज्य हैं क्योंकि अपध्यान के कारण शरीर में इस प्रकार के परिवर्तन. होते हैं जिससे मनुष्य का समस्त पाचनतन्त्र तथा परम्परया सम्पूर्ण शरीरतन्त्र दुष्प्रभावित हो उठता है। दूसरी तरफ सुध्यान का मोटा स्वरूप प्रसन्नचित्त या मन से है। इस प्रकार का सुध्यान आध्यात्मिक एवं लौकिक दोनों दृष्टियों से कल्याणकारी है। इससे ऊर्जा का प्रसार होता है। अलौकिक आनन्द मिलता है। सन्दर्भ १. संस्कृत हिन्दी कोश, वामन शिवराम आप्टे, पृ. ५०३ २. वही, पृ. ५०२ ३. 'तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम्'- ३.२ पातञ्जलयोगदर्शनम्, स्वामी श्री ब्रह्मलीन ___ मुनि ४. 'तदेतद्धारणाध्यानसमाधिः त्रयमेकत्र संयमः' पातञ्जलयोगदर्शन की सूत्र संख्या ३.४ पर व्यासभाष्य-स्वामी श्री ब्रह्मलीन मुनि म. ५. श्रीमद्भगवद्गीता- पृ. ६८, गीता प्रेस, गोरखपुर, २०६२ ६. तत्त्वार्थसूत्र, सं. पं. सुखलाल संघवी, ९.२७ ७. तत्त्वार्थवार्तिक, पं. महेन्द्र कुमार जैन, (भाग-२), ९.२७, पृ. ७९० ८. सर्वार्थसिद्धि, पं. फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री, ९.२७, पृ. ४४४-२३-२५ ९. तत्त्वार्थवार्तिक, पं. महेन्द्र कुमार जैन, (भाग-२), ९.२७, पृ. ७९० १०. तत्त्वार्थवार्तिक (हिन्दी सार), भाग-२, ९०२७, पृ. ७९० ११. वही, तथा सर्वार्थसिद्धि, ९.२७.४४५.१८ १२. (i) व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, (भाग-४), २५.७.२३७ आगम प्रकाशन समिति, संपा. श्री अमर मुनि, ब्यावर, राज. झाणे चउव्विहे पण्णते, तं जहा-अट्टे झाणे, रोद्दे झाणे, धम्मेझाणे, सुक्के झाणे। (ii) औपपातिकसूत्र, सूत्र ३०, पृ. ४९ डॉ. छगनलाल शास्त्री, काव्यतीर्थ (iii) तत्त्वार्थसूत्र, ९.२८ १३. (i) भगवतीसूत्र (व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र) भाग-४, २५.७.२३७-२४९ (ii) औपपातिकसूत्र, सूत्र संख्या ३० पृ. ४९-५० १४. वही १५. वही
SR No.525074
Book TitleSramana 2010 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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