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________________ २८ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक ४ / अक्टूबर-दिसम्बर - १० ( वेदान्त, बौद्ध, वैशेषिक, सांख्य, योग) का उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति है। उमास्वाति ने अपने सूत्र ग्रन्थ का प्रारम्भ भी मोक्षमार्ग प्रतिपादक सूत्र से ही किया है। दिगम्बर परम्परा में तो तत्त्वार्थसूत्र 'मोक्षशास्त्र' के नाम से ही प्रसिद्ध है। अध्याय संख्या पर तत्त्वार्थसूत्रकार कणाद के वैशेषिकसूत्र से पर्याप्त प्रभावित हैं। तत्त्वार्थसूत्र १० अध्यायों में विभक्त है और सूत्र ३४४ हैं तथा कणाद का वैशेषिक सूत्र भी १० अध्यायों में बँटा हुआ है और सूत्र संख्या ३३३ है। इन दोनों की बाह्य रचना में इतना साम्य होते हुए भी विशेष अन्तर भी देखे जा सकते हैं कि तत्त्वार्थकार अपने सिद्धान्त की सिद्धि के लिए कहीं भी युक्ति या हेतु नहीं देते जबकि कणाद अपने सिद्धान्त की पुष्टि में पूर्वपक्ष - उत्तरपक्ष न करते हुए भी उनकी पुष्टि में हेतुओं का वर्णन करते हैं।४ दिगम्बर और श्वेताम्बरों के तत्त्वार्थसूत्र की संख्या में कुछ अन्तर है। तत्त्वार्थ का वैशिष्ट्य • उमास्वाति का तत्त्वार्थ की रचना का मुख्य प्रयोजन संक्षेप में सूत्र शैली में जैन सिद्धान्तों को प्रस्तुत करना था इसलिए उन्होंने जैन दर्शन के सभी महत्त्वपूर्ण पक्षों को लेते हुए विस्तार से बचते हुए सूत्रशैली में विवेचन किया। वाचक सूत्रकार के कई ऐसे मन्तव्य हैं जो दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायों के अनुकूल नहीं हैं। यद्यपि वे मन्तव्य दार्शनिक दृष्टि से महत्त्व के नहीं हैं इसलिए उनकी चर्चा यहाँ नहीं की गयी है। सत्, द्रव्य, प्रमाण, नय आदि विषय के सन्दर्भ में वाचक की अपनी मौलिक सूझ है जो आगमकाल में प्रचलित नहीं थी। इस तरह के कुछ बिन्दुओं को लेकर तत्त्वार्थ का वैशिष्ट्य इस प्रकार है सत् भारतीय दर्शन के अन्तर्गत द्रव्य को पदार्थ, तत्त्व, सत् आदि नामों से जाना जाता है। जैन आगम साहित्य में इसके लिये 'द्रव्य' एवं 'तत्त्व' शब्द ही प्राप्त होता है, सत् नहीं । किन्तु दूसरे दर्शनों में शाश्वत पदार्थों के लिए 'सत्' शब्द प्रयुक्त हुआ है, जैसे ऋग्वेद के दीर्घतमा ऋषि कहते हैं " एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति" (१.१६४.४६ ) । उमास्वाति के सामने यह प्रश्न था कि जैन दर्शन में सत् किसे कहा जाए एवं उसकी क्या परिभाषा की जाए। उमास्वाति ने अपनी मेधा से द्रव्य को ही सत् कहा एवं उसे परिभाषित करते हुए कहा- 'उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत्' । इस परिभाषा से उन्होंने
SR No.525074
Book TitleSramana 2010 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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