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उत्तराध्ययन सूत्र की सुखबोधा वृत्ति : एक समीक्षा : २१ अर्थात् मन्दमति और संक्षिप्त रुचि प्रधान पाठकों के लिए मैंने अनेकार्थ एवं गंभीर-विवरण से पाठान्तरों और अर्थान्तरों से दूर रहकर इस टीका की रचना की है। अर्थान्तरों और पाठान्तरों के जाल से मुक्त होने के कारण इस टीका की सुखबोधा टीका संज्ञा सार्थक भी है। इस टीका (वृत्ति) में छोटीबड़ी सभी मिलाकर १२५ प्राकृत भाषा निबद्ध कथाएँ वर्णित हैं। इन कथाओं में प्रेम, परम्परा-प्रचलित मनोरंजक वृत्तान्त, जीव-जन्तु, जैन साधुओं के आचार का महत्त्व प्रतिपादन करने वाली नीति तथा उपदेशात्मक कथाएँ वर्णित हैं। कथानक-रूढ़ियों का प्रतिपादन करने वाली कथाएँ भी हैं, जैसे- राजकुमारी का वानरी बन जाना, किसी राजकुमारी को हाथी द्वारा भगाकर जंगल में ले जाना। ऐसी ही कथाएँ ‘रयणचूडरायचरियं' में भी वर्णित हैं।
उत्तराध्ययन सुखबोधा वृत्ति की प्राकृत-कथाएँ आकर्षण का विषय रही हैं। जर्मनी के प्रसिद्ध विद्वान् डॉ. फीके ने 'साम्यसुत्त' नामक प्राकृत कथा पर अपना शोधपूर्ण निबन्ध लिखा है। यह कथा इसी वृत्ति से ली गयी है। इसी तरह डॉ. हर्मन जैकोबी ने 'महाराष्ट्रीय कथाएँ' नामक अपने निबन्ध में उत्तराध्ययन वृत्ति से कई कथाएँ लेकर उन पर शोधपूर्ण सामग्री प्रस्तुत की है। उत्तराध्ययन वृत्ति की इन कथाओं में से सात कथाओं का संकलन मुनि जिनविजय जी ने 'प्राकृत कथा संग्रह' के नाम से विक्रम संवत् १९७८ में अहमदाबाद से प्रकाशित किया है।
प्राकृत-कथाओं की प्रचुरता के कारण यह वृत्ति हरिभद्र शैली का अनुसरण करती हुई प्रतीत होती है। वैराग्य-रस से परिप्लावित ब्रह्मदत्त और अगडदत्त जैसी कथाओं के संयोग से इस सुविशाल टीका में जान आ गयी है और विभिन्न ग्रन्थों और गाथाओं के उदाहरणों के कारण तथा नाना विषयों की विवेचना के कारण इसकी सार्वजनिक उपयोगिता सिद्ध हुई है।
आचार्य नेमिचन्द्र सरि ने उत्तराध्ययन के प्रथमांशों की जितनी विस्तृत टीका की है उतनी उत्तरांशों की टीका में विस्तार नहीं है। अंतिम १२-१३ अध्ययनों की टीका अधिक संक्षिप्त होती गयी है, उसमें न कोई विशेष कथाएँ हैं और न कोई अन्य उद्धरण ही हैं।
उत्तराध्ययन सुखबोधा टीका सांस्कृतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। उसमें तत्कालीन समाज और संस्कृति के सम्बन्ध में विविध सामग्री प्राप्त होती है। डॉ. जगदीश चन्द्र जैन एवं देवेन्द्रमुनि ने इस टीका की सांस्कृतिक सामग्री पर कुछ प्रकाश डाला है। उत्तराध्ययन की सुखबोधा टीका से ज्ञात होता