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________________ २२ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक ४ / अक्टूबर-दिसम्बर-१० है कि राजा का उत्तराधिकारी उसका ज्येष्ठ पुत्र होता था। उसके राज्य-कार्य आदि से विरक्त होने पर लघ-पत्र को राज्य दे दिया जाता था। राजकुमार यदि दुर्व्यसनों में फँस जाता था तो उसे देश-निकाला भी दे दिया जाता था। विवाह के समय शुभ तिथि और मुहूर्त भी देखे जाते थे। छोटी-छोटी बातों के लिए पत्नियों को छोड़ देने की भी प्रथा थी। एक वणिक् ने अपनी पत्नी को इसलिए छोड़ दिया कि वह सारा दिन शरीर की साज-सज्जा किया करती थी और घर का बिल्कुल ध्यान नहीं रखती थी। सामान्य स्त्रियों के अतिरिक्त वेश्याओं का भी सम्मान था। विशिष्ट वेश्याएँ नगर की शोभा, राजाओं की आदरणीय और राजधानी की रत्न मानी जाती थीं।१० इस सुखबोधा टीका में अनेक रोगों और उनकी परिचर्याओं का भी उल्लेख मिलता है। रोगों के नाम हैं- श्वास, खांसी, ज्वर दाह, उदरशूल, भगंदर, अर्श, अजीर्ण, दृष्टिशूल, मुखशूल, अरुचि, अक्षिवेदना, खाज, कर्णशूल, जलोदर और कोढ़।११ चिकित्सा के मुख्य चार पाद माने गये हैं- १. वैद्य, २. रोगी, ३. औषधिं और ४. परिचर्या करने वाले।१२ __इस वृत्ति से शिक्षाओं के सम्बन्ध में भी जानकारी प्राप्त होती है। विद्यार्थी का जीवन सादगी से भरा होता था। कितने ही विद्यार्थी अध्यापक के घर पर रहकर पढ़ते थे और कितने ही धनवानों के यहाँ पर अपने खाने-पीने का प्रबन्ध कर लेते थे। कौशाम्बी नगरी के ब्राह्मण काश्यप का पुत्र कपिल श्रावस्ती में पढ़ने के लिए गया, और कलाचार्य के सहयोग से अपने भोजन का प्रबन्ध वहाँ के धनी शालीभद्र के यहाँ पर किया।१३ विद्यार्थी का समाज में बहुत सम्मान था। जब कोई विद्याध्ययन समाप्त कर घर जाता था तब उसका सार्वजनिक सम्मान किया जाता था। नगर को सजाया जाता था। राजा भी उसके स्वागत के लिए सामने जाता था। उसे बड़े आदर के साथ लाकर इतना उपहार समर्पित करते थे कि जीवनभर उसे आर्थिक दृष्टि से परेशानी नहीं उठानी पड़ती थी।१४ बहत्तर कलाओं में शिक्षण का प्रचलन था।१५ समुद्रयात्रा के भी कई वर्णन इस वृत्ति में उपलब्ध हैं। व्यापारी अपना माल भर कर नौकाओं (जहाजों) से दूर-दूर देशों में जाते थे। कभी-कभी तूफान आदि के कारण नौका टूट जाती थी और सारा माल पानी में बह जाता था। जहाज के वलय-मुख (भँवर) में प्रविष्ट होने का बहुत भय था।१६
SR No.525074
Book TitleSramana 2010 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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