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आदर्श और स्वस्थ जीवन जीने की कला : ५
स्वास्थ्य की चिंता करते हैं। मानसिक और भावात्मक स्वास्थ्य को गौण कर देते हैं। इस संदर्भ में आचार्यश्री महाप्रज्ञ का मानना है कि शारीरिक स्वास्थ्य का मूल्य १०% है मानसिक स्वास्थ्य का मूल्य ३०% है और भावात्मक स्वास्थ्य का मूल्य ६०% है। अतः हम उल्टे क्रम से चलें। पहले भावात्मक स्वास्थ्य की ओर फिर मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की चिंता करें। इस क्रम से चलने पर चिंता स्वयं अचिंता बन जायेगी । १३
'चैतन्य' विकास और भाव - परिष्कार का एक बहुत बड़ा माध्यम हैसंकल्प शक्ति का विकास। संकल्प शक्ति का अर्थ है- कल्पना को भावना का रूप देना। आचार्यश्री महाप्रज्ञ का मानना है - संकल्प की शक्ति असीम है। उसकी असीमता को बताते हुए वे लिखते हैं- संकल्प शक्ति का विकास होने पर हम आकाश के वायुमंडल से परमाणुओं को ले सकते हैं और उन्हें इच्छित आकार में परिणमन करा सकते हैं। वैक्रियक-लब्धि के द्वारा नाना रूपों का निर्माण करना, आहारक-लब्धि के द्वारा पुतले का निर्माण करना, विचारों का संप्रेषण करना, विचारों को मंगवाना, ये सारे संकल्प शक्ति के प्रयोग हैं। १४ आचार्यश्री का मानना है कि सारे 'भाव - मोह' की व्यूह रचना है। भावतंत्र को स्वस्थ बनाने के लिए इस मोह के चक्रव्यूह को तोड़ना आवश्यक है। इस व्यूह रचना का संचालन करने वाले दो तत्त्व हैं- अहंकार और ममकार । इनसे राग-द्वेष उत्पन्न होता है और राग-द्वेष, कषाय और नो- कषाय को उत्पन्न करते हैं। एक पूरा क्रम हैअहंकार-ममकार, राग-द्वेष, कषाय- नोकषाय और फिर योग- मन, वचन, काया की प्रवृत्ति । प्रेक्षाध्यान इस व्यूह रचना को तोड़ने का प्रयोग है।
१. चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा- मोह के चक्रव्यूह से बाहर निकलने के लिए मूल बिन्दु को पकड़ना आवश्यक है और वह है - भाव । भावतंत्र पर प्रहार करने के लिए अशुभ भावों का विरोध तथा शुभ भावों की दिशा में प्रस्थान करना जरूरी है। आचार्यश्री महाप्रज्ञ के अनुसार ज्योतिकेन्द्र, शांतिकेन्द्र और ज्ञानकेन्द्र इन तीनों चैतन्य केन्द्रों पर ध्यान करने से भावतंत्र का परिष्कार होता है । १५ ज्योतिकेन्द्र पर सफेद रंग के ध्यान से क्रोध संतुलित होता है। शांतिकेन्द्र पर ध्यान करने से उत्तेजना के भाव शान्त होते हैं। भावतंत्र के परिष्कृत होने से मन में कोई विकृत चिंतन नहीं आता, वाणी से कोई कटु शब्द नहीं निकलता और शरीर की क्रिया भी बदल जाती है।
२. लेश्याध्यान- शुभ भावों को पुष्ट करने का एक महत्त्वपूर्ण प्रयोग हैलेश्याध्यान। लेश्याध्यान रंगों का ध्यान है। शुभ रंगों के ध्यान से अशुभ भाव