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________________ ४ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक २ / अप्रैल-जून १० और शरीर के बीच सबसे बड़ा सम्बन्ध - - सेतु मस्तिष्क है। उससे तैजस शक्ति (प्राण शक्ति) निकलकर शरीर की सारी क्रियाओं का संचालन करती है। नाभि के पृष्ठ भाग में खाए हुए आहार का प्राण के रूप में परिवर्तन होता है। अतः शारीरिक दृष्टि से मस्तिष्क और नाभि का पृष्ठ भाग- ये दोनों तेजोलेश्या के महत्त्वपूर्ण केन्द्र बन जाते हैं । १० आचार्यश्री महाप्रज्ञ के अनुसार कुंडलिनी को जगाने के अनेक हेतु हैं। उनमें से प्रेक्षाध्यान के निम्न प्रयोग भी सशक्त माध्यम बनते हैं १. दीर्घ श्वास प्रेक्षा - दीर्घश्वास प्रेक्षा की प्रक्रिया है। वे लिखते हैं- यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन एक घंटा दीर्घश्वास प्रेक्षा का अभ्यास करता है तो उसकी कुंडलिनी जागृत हो जाती है। २. अन्तर्यात्रा - अन्तर्यात्रा में सुषुम्ना के मार्ग से चित्त को शक्ति केन्द्र से ज्ञान केन्द्र तक और ज्ञान केन्द्र से शक्ति केन्द्र तक ले जाया जाता है। चित्त की यह यात्रा कुंडलिनी को जागृत करने का महत्त्वपूर्ण माध्यम है। ३. शरीर - प्रेक्षा- शरीर दर्शन का अभ्यास पुष्ट होने पर कुंडलिनी ( तैजस शक्ति) का जागरण होता है। ४. चैतन्य - केन्द्र प्रेक्षा- चैतन्य केन्द्रों को देखने से वहां के सारे अवरोध समाप्त हो जाते हैं, जिससे कुंडलिनी जागरण सहज हो जाता है। ५. लेश्या - ध्यान - कुंडलिनी जागरण का यह सबसे शक्तिशाली माध्यम है। रंग हमारे भावतंत्र को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं। रंगों के ध्यान से शक्ति का सहज जागरण होता है। इस प्रकार प्रेक्षाध्यान की पूरी प्रक्रिया कुंडलिनी के जागरण की प्रक्रिया है।" अनुप्रेक्षा आदतों को बदलने का एक महत्त्वपूर्ण प्रयोग है। आचार्यश्री महाप्रज्ञ के अनुसार शरीर के किसी भी अवयव में रोग है तो उसके मस्तिष्क का संवादी अवयव रोगग्रस्त हो जाता है। अनुप्रेक्षा द्वारा मस्तिष्क के उस अवयव को प्रभावित करके रोग को नष्ट किया जाता है । १२ प्रेक्षाध्यान में भावात्मक स्वास्थ्य के लिए अनेक प्रयोग सुझाए गये हैं। आचार्यश्री महाप्रज्ञ के अभिमत में भावात्मक स्वास्थ्य का मूल सूत्र है - ' वीतरागता । वीतराग का भावतंत्र प्रशस्त और शक्तिशाली होता है। प्रेक्षाध्यान भावात्मक स्वास्थ्य की प्रक्रिया है। इसका मुख्य उद्देश्य भावतंत्र कां परिष्कार करना है। यदि भाव स्वस्थ है तो मन भी स्वस्थ भी होगा और शरीर भी स्वस्थ होगा। यदि भावतंत्र अस्वस्थ है तो न मन स्वस्थ होगा और न शरीर स्वस्थ होगा। यह एक नया अभ्युगमय है। आज अधिकांश लोग शारीरिक
SR No.525072
Book TitleSramana 2010 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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