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महावग्ग में औषधि एवं शल्य चिकित्सा : ८५
परन्तु इस बात का ध्यान रहे कि इन्हें समय से लेकर, समय से पकाकर, समय से तेल मिलाकर सेवन करना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने यह भी बता दिया कि यदि ये औषधियाँ असमय में ली जाँय, समय से पकायी भी न जाँय तथा असमय तेल में मिलायी जाय, तो ऐसी औषधि को जो खायेगा उसे त्रिविध 'दुष्कृत दोष लगेगा।
औषधि विज्ञान के साथ-साथ शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में भी बुद्ध के समय में व्यापक विकास दिखाई देता है। उस समय जीवक बिम्बिसार के दरबार का प्रमुख राजवैद्य जीवक वैद्य होने के साथ एक उच्च कोटि का शल्य चिकित्सक भी था। एक बार जब राजगृह का कोई श्रेष्ठी जो ७ वर्ष से शिरोरोग से पिड़ित था, तथा काफी पैसा धन-सम्पत्ति आदि खर्च करने पर भी उसके असाध्य रोग ठीक न हुए तथा कुछ वैद्यों ने भविष्यवाणी की कि यह आज से पाँच दिन बाद मर जाएगा तथा किसी ने सात दिन बार मरने की घोषणा कर दी तब राजा के आदेश से जीवक उसके इलाज करने को पहुँचा तथा निरीक्षण करने के बाद जीवक बोला, तुम ठीक हो सकते हो किन्तु इसके लिए तुम्हें ७ माह एक करवट, ७ माह दूसरे करवट तथा ७ माह उतान लेटना होगा। वह रोगी मान गया तब जीवक ने उसे मंच पर लिटाकर उसे बाँध दिया, तत्पश्चात् उसके सिर के त्वचा को फाड़कर खोपड़ी खोलकर चिमटी से एक बड़ा, तथा एक छोटा कीड़ा निकाला। तत्पश्चात् खोपड़ी को पुनः जोड़कर लेप लगा दिया। एक हप्ता बीतने पर श्रेष्ठी बोला मैं इस करवट नहीं लेट सकता भले ही मैं मर जाऊं, तब जीवक ने उसे दूसरे करवट लिटा दिया। एक सप्ताह बीतने पर फिर उसने कहा मैं अब इस करवट नहीं लेट सकता तब जीवक ने उसे सीधे लिटा दिया किन्तु एक सप्ताह बीतने पर उसके उसी प्रकार के अनुरोध करने पर जीवक ने कहा यदि मैं सात मास की अवधि नहीं निर्धारित करता तो तुम इतना भी नहीं लेट पाते, मैं जानता था कि २१ दिन तुम्हारे रोग ठीक होने के लिए काफी थे। अब तुम बिल्कुल ठीक हो तथा अपना काम कर सकते हो। इस प्रकार जीवक के शल्य चिकित्सा से उस श्रेष्ठी का रोग बिल्कुल ठीक हो गया तथा उसे नया जीवन मिला।२४
इसी प्रकार एक अन्य गृहस्थ की भार्या के ७ वर्ष से पीड़ित शिरोरोग को जीवक ने औषधि द्वारा ठीक कर दिया। घृत में विभिन्न प्रकार की औषधियों को मिलाकर उसके नथुनों में तथा नाक में डाला गया। घृत मुख के माध्यम से बाहर निकल गया इसके पश्चात् उस गृहस्थ की भार्या बिल्कुल ठीक हो गयी तथा काफी धन सम्पदा जीवक को प्राप्त हुआ।
एक बार स्वयं भगवान् का शरीर व्याधिग्रस्त हो गया था तो आनन्द ने जीवक के पास जाकर भगवान् बुद्ध के व्याधि का उपचार करने को कहा तब