SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८४ : श्रमण, वर्ष ६०-६१, अंक ४, १ / अक्टू.-दिसम्बर ०९-जन.-मार्च-१० इतने पर भी जब वह रोग ठीक न हो तो ऋगड (विषाण) विधि से रक्त चूसने की अनुमति देता हूँ। सर्पविष चिकित्सा के विषय में विधान बताते हुए एक विवरण आया है कि एक बार किसी भिक्षु को सांप ने काट लिया तो इस विषय में बताते हुए गौतम बुद्ध ने रोगी को चार महाविकटों के प्रयोग की अनुमति दी -१. गोबर, २. मूत्र, ३. राख, ४. मिट्टी।८ इसी प्रकार जब एक भिक्षु ने विष पी लिया तो ऐसे में भगवान् ने गोबर पिलाने की अनुमति दी।९।। पाण्डु रोग की चिकित्सा के विषय में उल्लेख मिलता है कि एक बार जब किसी भिक्षु को पाण्डु रोग हो गया तो भगवान् ने इसके उपचार हेतु गोमूत्र मिश्रित हरीतकी (हरे) के प्रयोग की अनुमति दी। तालाब में उत्पन्न होने वाली चीजों का उपयोग औषधि के रूप में करने की अनुमति भी भगवान् ने दी। एक बार जब सारिपुत्र के सारे शरीर में जलन होने लगी तब महामौद्गलायन के पूछने पर कि यह जलन कैसे ठीक होगी, सारिपुत्र ने स्वयं बताया कि यह कमल जड़ और कमल नाल से ठीक होगा।तब मौद्गलायन ने उसे वह लाकर दिया जिसके सेवन से उसके शरीर की जलन ठीक हो गयी। ऐसा प्रायः देखा गया है कि बौद्ध हिंसा का विरोध करते हैं, पशु हिंसा को ठीक नहीं मानते, परन्तु स्वयं भगवान बुद्ध ने औषधि के रूप में पशुओं का मांस, वसा तथा उसके रक्त उपयोग की अनुमति दी है। एब बार जब किसी भिक्षु को प्रेत बाधा लग गयी तथा वैद्य लोग उसे निरोग नहीं कर पाये तो इससे परेशान होकर उस रोगी ने सुअर मारने के स्थान पर जाकर सुअर का कच्चा मांस एवं कच्चा रक्त पी डाला। इससे उसकी प्रेतबाधा समाप्त हो गयी। जब उसने भगवान् से यह घटना बतायी तो उन्होंने कहा भिक्षुओं प्रेतबाधा होने पर कच्चे मांस तथा कच्चे रक्त के उपयोग की अनुमति देता हूँ।२२ महावग्ग में वसा निर्मित औषधियों के उपयोग का भी उल्लेख किया गया है। वसा में मिश्रित औषधियों के सेवन के महत्त्व को ध्यान में रखकर गौतम बुद्ध ने इसके उपयोग के विधान की अनुमति दे दी तथा साथ ही साथ इसके सेवन के तरीके को भी स्पष्ट रूप से बताया। क्योंकि एक बार जब भिक्षुओं को एक रोग के उपचार हेतु इसकी (चर्बी युक्त औषधि) जरूरत पड़ी तो उन्होंने कहा 'भिक्षुओं में वसामिश्रित औषधियों के सेवन की अनुमति देता हूँ जिसमें रीछ, मछली, सुसका (सोंस की बड़ी मछली), सूअर, गधे की वसा मिली हो।
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy