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________________ महावग्ग में औषधि एवं शल्य चिकित्सा : ८३ यद्यपि बौद्ध भिक्षुओं के संघ में रूप, शृङ्गार, प्रसाधन आदि के उपयोग करने पर मनाही थी किन्तु इसके बावजूद भी भगवान् बुद्ध ने नेत्रों के रोग को ठीक करने की बात को ध्यान में रखकर अञ्जन को औषधि के रूप में उपयोग करने की अपनी स्वीकृति दे दी थी। एक उदाहरण मिलता है कि एक बार किसी भिक्षु को नेत्र रोग हो गया था इसी कारण दूसरे भिक्षु उसे पकड़कर शौचादि के लिए ले जाते थे। भगवान् ने यह सब देखकर कहा भिक्षुओं मैं अनुमति देता हूँ नेत्र रोग में अञ्जन लगाने की, जैसे काला अञ्जन, रस अञ्जन, रसीत अञ्जन, गेरू, व काजल आदि। साथ ही साथ इसमें सहायक औषधि जैसे चन्दन, तगर, कालानुसारी, तालीस एवं भद्रयुक्ता आदि मिलाने की अनुमति देता हूँ।१२ विभिन्न प्रकार के रोगों के उपचार हेतु उपर्युक्त औषधियों के साथ-साथ भगवान् बुद्ध ने यह भी बताया कि उन औषधियों का सेवन किस प्रकार से किया जाय। एक बार जब आयुष्मान पिलिन्दवच्छ को शिरोरोग हो गया तो भगवान् से पूछने पर उन्होंने कहा कि मैं शिर पर तेल रखने की अनुमति देता हूं। किन्तु इससे भी जब उनका यह रोग नष्ट नहीं हुआ तो इसके लिए भगवान् ने नया विधान बनाया तथा कहा कि मैं अनुमति देता हूँ तथ्य (सूंघनी) लेने की। इसके साथ ही साथ उन्होंने औषधि युक्त धूम्रपान की भी अनुमति दी जिसे चिलम में रखकर धूम्रपान किया जाता था। इसी प्रकार गौतम बुद्ध ने वात रोग में तेल में मद्य मिलाने की भी अनुमति दी क्योंकि एक बार जब आयुष्मान पिलिन्दवच्छ को वात रोग हो गया तो वैद्यों ने उसके उपचार हेतु तैलपाक का उपयोग बताया इस बारे में जब भगवान् से पूछा गया तो उन्होंने तैलपाक की अनुमति दे दी। बाद में कभी इसी तैलपाक में वैद्यों ने मद्य मिलाने की अनुमति दी जिसे भगवान् ने स्वीकार कर लिया। परन्तु समय के साथ जब भिक्षु अधिक मात्रा में मद्य मिलाकर उसे पीने लगे तो भगवान ने कहा कि भिक्षुओं! वातव्याधि की अवस्था में तैल पाक में उतना ही मद्य मिलाया जाना चाहिए जिससे न उस तेल में मद्य का रंग आये न गंध और न उसके स्वाद का ही उसमें भान हो, उतना ही मद्य मिश्रित पाक पीने की अनुमति देता हूँ। इससे स्पष्ट है कि जिन चीजों का प्रतिबन्ध संघ में किया गया था उसके औषधात्मक गुण को देखते हुए केवल आवश्यक मात्रा में उसके प्रयोग के विधान की अनुमति भगवान् बुद्ध ने दी थी। गठिया रोग के इलाज के विषय में बताते हुए भगवान् ने कहा कि 'भिक्षुओं ऐसे समय में मैं अनुमति देता हूँ कि उन अंगों से रक्त को निकाल लेना चाहिए।
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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