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८० : श्रमण, वर्ष ६०-६१, अंक ४, १ / अक्टू.-दिसम्बर ०९-जन.-मार्च-१०
उपसंहार :
भारतीय दर्शनशास्त्र में योगदर्शन का विशिष्ट स्थान है। महर्षि पतञ्जलि ने चार पद में योगदर्शन की रचना की है जिसमें १८५ सूत्र हैं। पतञ्जलि के अष्टांग योग में प्राणायाम का असीम महत्त्व है। यहाँ महर्षि पतंजलि के योगदर्शन तथा आचार्य हेमचन्द्र के योगशास्त्र में प्राणायाम विषयक जो निरूपण है उसका विवेचन किया गया है। आधुनिक समय में योग के प्रति समाज में जिज्ञासा उत्पन्न हो रही है। दोनों ग्रन्थों में योग के महत्त्वपूर्ण अंग प्राणायाम का निरूपण उपयोगी सिद्ध होता है। ग्रन्थ-सूचि १. अमरकोश, संपादक : हरदत्त शर्मा, ओरीएन्टल बुक एजेन्सी, पूना १९४१। २. योगशास्त्र आचार्य हेमचन्द्रकृत, गुजराती भाषान्तर श्री केसरविजयजी गणि,
प्रकाशक : बालचन्द्र शकरचन्द शाह, आवृत्ति-५, विक्रम संवत-२०१५। ३. योगदर्शनम् (महर्षि पतंजलिकृत), व्याख्याकार-स्वामी सत्यपति
परिव्राजक। प्रकाशक : दर्शन योग महाविद्यालय, आर्यवन, रोजड, जि.
साबरकांठा, (गुजरात)। सन्दर्भ-सूची १. योगदर्शनम् सूत्र, १-२, (महर्षि पतंजलि) २. योगदर्शनम् सूत्र, १-३, (महर्षि पतंजलि) ३. योगदर्शनम् सूत्र, २-२९, (महर्षि पतंजलि) ४. योगदर्शनम् सूत्र, २-४९, (महर्षि पतंजलि) ५. योगदर्शनम् सूत्र, २-५०, (महर्षि पतंजलि) ६. योगदर्शनम् सूत्र, २-५१, (महर्षि पतंजलि) ७. योगशास्त्र सूत्र, ५-१, (आचार्य हेमचन्द्र) ८. योगशास्त्र सूत्र, ५-३, (आचार्य हेमचन्द्र) ९. योगशास्त्र सूत्र, ५-१० (अ), (आचार्य हेमचन्द्र) १०. योगदर्शनम् सूत्र, २-५२, (महर्षि पतंजलि) ११. योगदर्शनम् सूत्र, २-५३, (महर्षि पतंजलि) १२. योगदर्शनम् सूत्र, १-३४, (महर्षि पतंजलि)