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पातञ्जल 'योगदर्शन' और हेमचन्द्राचार्य रचित 'योगशास्त्र' में : ७९
बढ़ती है। शान्त प्राणायाम से वात, पित्त, कफ आदि दोषों में लाभ मिलता है। उत्तर, अधर और कुम्भक प्राणायामों से स्थिरता आती है।
तदुपरान्त आचार्य हेमचन्द्र प्राण, अपान आदि पाँच वायु के नियत स्थानों की भी व्याख्या करते हैं। वायु पर विजय अर्थात् श्वास को स्थिर करने की कला से अनेकविध लाभ प्राप्त होते हैं। जैसे कि प्राण वायु वश में करने से जठराग्नि की प्रबलता बढ़ती है एवं दीर्घश्वास चलता है अर्थात् श्वासरोग का निवारण होता है। शरीर हल्का होता है, समान और उदान वायु को जीतने से घाव का निवारण होता है और अस्थि सम्बन्धी व्याधियाँ समाप्त हो जाती हैं। उदान वायु को जीतने से उत्क्रान्ति अथवा दशम द्वार से प्राण त्याग किया जा सकता है। उसके उपरान्त ईड़ा नाड़ी के मार्ग से प्रवेश करने वाले वायु के प्रवेश सम्बन्धी लाभ की जानकारी भी आचार्य हेमचन्द्र ने दी है। ___ महर्षि पतञ्जलि प्राणायाम का फल बताते हुए कहते हैं-'ततः क्षीयते प्रकाशावरणम्। प्राणायाम से ज्ञान को आच्छादित करने वाला आवरण नष्ट हो जाता है। जिससे अशुभ संस्कार एवं भावी अशुभ कर्मों से मुक्ति मिलती है। उसके पश्चात्१. व्यक्ति जब प्राणायाम करता है तब मन एवं इन्द्रियों की चंचलता स्थिर
हो जाती है। जिससे योगी स्थिर बुद्धि से स्वयं को किसी भी दोष से मुक्त करने में सक्षम होता है। उसके दोष दूर होने से शुभ संस्कार विकसित
होते हैं। इससे अज्ञान का नाश होता है। २. प्राणायाम करने से मन एवं इन्द्रियों पर योगी का अधिकार हो जाता है
अतः वह विधिपूर्वक ईश्वर की उपासना करने में सफल होता है। ईश्वर
उसको विद्या प्रदान करता है इस विद्या से दुर्गुणों पर विजय प्राप्त होती है। ३. प्राणायाम से सात्विक गुणों की वृद्धि और रजोगुण व तमोगुण का नाश
होता है अर्थात् अज्ञान का नाश और ज्ञान की वृद्धि होती है। ४. प्राणायाम से शरीर एवं नाड़ियों की शुद्धता में वृद्धि होती है। उनके शुद्ध
होने से ज्ञान का विकास होता है, इसलिए कहा गया है कि प्राणायाम
से बढ़कर कोई उत्तम तप नहीं।। ५. प्राणायाम के अनुष्ठान से धारणाओं में अर्थात् मस्तिष्क में अदभुत शक्ति
विकसित होती है जिससे मन शान्त रहता है एवं योगी हमेशा स्फूर्तिदायक महसूस करता है, सब कार्यों में उसका मन लगता है। 'धारणासु च योग्यता मनस:१९ ।' 'प्रच्छर्दनविधारणाभ्यां वा प्राणस्य।'