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७८ : श्रमण, वर्ष ६०-६१, अंक ४, १ / अक्टू.-दिसम्बर ०९-जन.-मार्च-१०
रेचक प्राणायाम:
श्वास को निकालने की क्रिया अथवा श्वास को अन्दर से बाहर निकालने की प्रक्रिया रेचक प्राणायाम कहलाती है। पूरक प्राणायाम :
बाह्य वायु को खींचकर अन्दर श्वास भरने की क्रिया को पूरक प्राणायाम कहते हैं। कुम्भक प्राणायाम :
श्वास के आवागमन को स्थिर करना अथवा रोकना कुम्भक प्राणायाम कहलाता है। प्रत्याहार प्राणायाम :
एक स्थान से अन्य स्थान पर वायु को खींच कर ले जाना प्रत्याहार प्राणायाम कहलाता है। शान्त प्राणायाम :
नासिका एवं मुख द्वार से वायु का सन्तुलनात्मक नियमन करना शान्त प्राणायाम कहलाता है। शान्त और कुम्भक प्राणायाम में केवल इतना अन्तर है कि कुम्भक में नाभिकमल में श्वास को रोका जाता है जबकि शान्त प्राणायाम में ऐसा कोई नियम नहीं है। उत्तर प्राणायाम : ____ बाह्य वायु को अन्दर खींचकर अत्यधिक उन्नत स्थान में धारण करके रखने को उत्तर प्राणायाम कहा जाता है। अधर प्राणायाम :
उत्तर प्राणायाम के विपरीत प्रकार से अर्थात् नाभि आदि निम्न प्रदेश में वायु को धारण करना अधर प्राणायाम कहलाता है। प्राणायाम की फलप्राप्ति :
आचार्य हेमचन्द्र ने 'योगशास्त्र में प्राणायाम के प्रभावशाली परिणामों का निरूपण किया है। जैसे कि रेचक प्राणायाम से उदर की व्याधि और कफ का नाश होता है।
_ 'रेचनादुदरव्याधेः कफस्य च परिक्षयः ।'
जबकि पूरक प्राणायाम से शरीर हृष्ट-पुष्ट बनता है और रोगों का नाश होता है। शरीर की ग्रन्थियों का विकास होता है। शरीर में बल की वृद्धि होती है और वायु को स्थिर किया जा सकता है। प्रत्याहार नामक प्राणायाम से शरीर की कान्ति