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७६ : श्रमण, वर्ष ६०-६१, अंक ४, १ / अक्टू.-दिसम्बर ०९-जन.-मार्च-१०
प्रश्वासपूर्वक गति को रोका जाता है। स्तम्भवृत्ति प्राणायाम में प्राण को, न बाहर निकाला जाता है न अन्दर लिया जाता है किन्तु यथास्थान रोका जाता है। यह स्तम्भवृत्ति प्राणायाम में श्वास-प्रश्वास को ज्यों का त्यों रोक दिया जाता है। इन तीन प्राणायामों को देश, काल, संख्या से परीक्षित किया जाता है। प्राण को शरीर से बाहर निकाला जाता है तब वह जहाँ रहता है तथा प्राण को शरीर में अन्दर रोका गया है तब शरीर में जहाँ प्राण रहता है उसको देश कहते हैं। प्राणायाम करते वक्त जितने समय तक प्राण को रोका जाता है उन क्षणों को काल कहते हैं और एक प्राणायाम के समय में स्वाभाविक तौर पर जितनी बार श्वास-प्रश्वास लिया जाता है उसको संख्या कहते हैं। बाह्यांतर विषयाक्षेपी नाम का चतुर्थ प्राणायाम है जो बाह्य तथा आभ्यन्तर प्राणायाम के विषय को दूर करने वाला है।
देश, काल, संख्या द्वारा परीक्षित बाह्य प्रदेश में होने वाला यह प्राणायाम चतुर्थ प्राणायाम द्वारा उल्लंघित होता है। जब बाह्य वायु बाहर से अन्दर की ओर गति करती है तो यह प्राणायाम उसकी गति को रोक देता है। इस तरह आभ्यन्तर परीक्षित प्राणायाम में वायु जब अन्दर से बाहर की ओर गति करती है तो यह प्राणायाम उसकी गति को रोक देता है। इस तरह दोनों प्राणायाम दीर्घ और सूक्ष्म हो जाता है। बाह्याभ्यन्तर दोनों प्राणायाम को क्रम से परिपक्व बनाने के बाद इस प्राणायाम द्वारा दोनों की गति का अभाव हो जाता है। यह चतुर्थ बाह्याभ्यन्तर, विषयापेक्षी प्राणायाम में बाह्य वायु अन्दर की ओर आता है तब और जब अन्दर का वायु बाहर की ओर जाता है तब उसको भी रोक देता है, अत: उसका नाम बाह्याभ्यन्तर विषयापेक्षी है। प्राणायाम का प्रभाव :
___ योग साधना के आठ अंग हैं, जिनमें प्राणायाम चौथा सोपान है। इसके पूर्व के अंग यम, नियम तथा आसन हमारे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए बहुत आवश्यक हैं। प्राणायाम के पश्चात् प्रत्याहार, ध्यान, धारणा तथा समाधि मानसिक साधन हैं। प्राणायाम दोनों प्रकार की साधनाओं के बीच का साधन है अर्थात् यह शारीरिक भी है और मानसिक भी। प्राणायाम से शरीर और मन दोनों स्वस्थ
और पवित्र हो जाते हैं तथा मन का निग्रह हो जाता है। 'प्राणायाम' दो शब्दों प्राण+आयाम से मिलकर बना है। प्राण का साधारण अर्थ है जीवनी शक्ति और आयाम का अर्थ है विस्तार अर्थात् जीवनी शक्ति का विस्तार। 'प्राण' शब्द के साथ प्रायः वायु जोड़ा जाता है, तब इसका अर्थ नाक द्वारा श्वास लेकर उसे फेफड़ों में फैलाना तथा उसके ऑक्सीजन के अंश को रक्त के माध्यम से शरीर के अंगप्रत्यंगों में पहुँचाना होता है।