________________
पातञ्जल योगदर्शन' और हेमचन्द्राचार्य रचित 'योगशास्त्र' में : ७५
मन एवं अन्य इन्द्रियों पर नियन्त्रण :
योगी शरीर, मन एवं अन्य इन्द्रियों पर नियन्त्रण प्राप्त कर लेता है और इन्द्रियों को अधर्म से हटाकर धर्म में प्रवर्त्तित कर लेता है ।
सकामकर्मी से निष्काम कर्मी में परिवर्तन :
योगी सकाम कर्मों को त्यागकर निष्काम कार्यों के लिए तत्पर रहता है। योग के अंग :
महर्षि पतञ्जलि के अनुसार योग को जिन आठ अंगों में विभाजित किया गया है, वे हैं यम, नियम आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान व समाधि' ।
योग जिज्ञासु को इन आठ अंगों का मन, वचन और तन से श्रद्धापूर्वक पालन करना चाहिए। प्रथम अंग यम का सम्बन्ध, परिवार, समाज, देश और विश्व के साथ अधिक एवं स्वयं के सन्दर्भ में कम रहता है। अन्य शब्दों में कहें तो दूसरे प्राणियों के साथ अच्छा व्यवहार रहता है और स्वयं के साथ अपेक्षाकृत कम हो जाता है।
नियम का सम्बन्ध यम से बिल्कुल विपरीत है, इसके अनुसार व्यक्ति का स्वयं से सम्बन्ध अधिक रहता है एवं दूसरों के प्रति न्यूनतम रहता है।
यम
म- नियम का पालन करना नौतिकता है। उसके पालन से व्यक्ति एवं समाज का निर्माण होता है। इसके विपरीत अगर इनका पालन न किया जाये तो उस स्थिति में व्यक्ति और समाज दोनों का चरित्र अशुद्ध होता है । अतः व्यवहार शुद्धीकरण हेतु तथा ईश्वर प्राप्ति के लिए यम, नियम का श्रद्धापूर्वक पालन करना आवश्यक है।
आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा एवं समाधि का सम्बन्ध समाज के अपेक्षाकृत व्यक्ति से अधिक है, इस प्रकार शुद्ध व्यवहार से उपासना की शुद्धि होती है और तदनुसार शुद्ध उपासना से व्यवहार की शुद्धि होती है। इस तरह का आचरण करनेवाले को आनन्द एवं सफलता प्राप्त होती है। पातञ्जल योगदर्शन' में प्राणायाम का निरूपण :
श्वास-प्रश्वास की गति को यथा शक्ति रोकने को प्राणायाम कहते हैं । बाहर के वायु को अन्दर लेना श्वास है । अन्दर के वायु को बाहर निकालना प्रश्वास है। इन दोनों की गति को यथाशक्ति रोकना प्राणायाम है। श्वास को बाहर निकाल कर बाहर की शक्ति अनुसार रोकना बाह्य प्राणायाम है।
बाह्य प्राणायाम में श्वासपूर्वक गति को रोका जाता है। आभ्यन्तर प्राणायाम में