SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रमणपरम्परा में समाज व्यवस्था : ७१ उपनयन, कला ग्रहण आदि संस्कार मनाये जाते थे। पाँच वर्ष के बालक को शिक्षा ग्रहण के लिए गुरुजी के पास, कलाचार्य के पास भेजा जाता था। ज्ञाताधर्मकथा के अनुसार थावच्चा पत्नी अपने पुत्र को पाँचवर्ष के उम्र में कलाचार्य के पास शिक्षा ग्रहणार्थ भेजती है। वह थावच्चा पुत्र सभी विद्याओं और ७२ कलाओं की शिक्षा अपने गुरु से ग्रहण करता है। विवाह संस्कार धूमधाम से मनाये जाते थे। बहुविवाह की प्रथा भी प्रचलित थी। श्रमण किंवा जैन परम्परा में विद्या और कला उन्नतावस्था में थी। व्याख्याप्रज्ञप्ति,२४ औपपातिक, आदि प्राचीन जैन आगम ग्रन्थों में वेद-वेदाङ्गों का उल्लेख है। स्थानांग में ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद का उल्लेख है। व्याख्याप्रज्ञप्ति में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, इतिहास, पुराण, निघंटु, संख्यान (गणित) शिक्षा, कल्प, व्याकरण छन्द, निरुक्त, ज्योतिष आदि का उल्लेख है। उत्तराध्ययन की टीका में चतुर्दश विद्यास्थानों-चार वेद, छह वेदाङ्ग, मीमांसा, न्याय पुराण और अन्य धर्मशास्त्रों आदि का निर्देश है। ज्ञाताधर्मकथा, समवायांग, औपपातिक, राजप्रश्नीय आदि ग्रन्थों में ७२ कलाओं का उल्लेख है। अन्य विद्याएं-तन्त्र-मन्त्र, जादू-टोना आदि भी प्रचलित थीं। यद्यपि साधु-साध्वियों के लिए इन सबका पूर्णतया निषेध था। राजधानियाँ, तीर्थस्थान, मठ, मन्दिर, उपाश्रय आदि विद्या अध्ययन के केन्द्र थे। प्राचीन काल में वाराणसी विद्या का प्रमुख केन्द्र था। शंखपुर का निवासी राजकुमार अगड़दत्त ने वाराणसी जाकर अनेक विद्याओं का अध्ययन अपने उपाध्याय के घर रहकर ही किया था। साधु-साध्वियों के उपाश्रय एवं उनके निवास-स्थान भी विद्याध्ययन के प्रमुख स्थल थे। आज भी जैनपरम्परा में इन स्थानों का विद्याध्ययन के लिए प्रभूत उपयोग होता है। लौकिक रीति रिवाजों में झाड़-फूंक, जादू-टोना, काजल, तिलक मंगल के लिए सरसो, दही, दूर्वा एवं अक्षत का उपयोग किया जाता था। निशीथसूत्र में कौतुक, भूतिकर्म (भस्ममलना, डोरा बाँधना), प्रश्न (देवता से प्रश्न पूछना) आदि विद्याओं का उल्लेख है। कार्य सिद्धि के लिए विभिन्न देवों की आराधना की जाती थी। मन्त्री अभयकुमार ने देवराधना कर राणी धारिणी की दोहइच्छा (अकालिक मेघदर्शन) को पूर्ण किया था । अवरकंका के राजा पद्मनाभ ने भी देवाराधन कर देव से ही द्रौपदी का अपहरण करवाया था।२८
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy