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________________ श्रमण, वर्ष ६०-६१, अंक ४-१ अक्टू.-दिस. ०९-जन.-मार्च १० श्रमणपरम्परा में समाज व्यवस्था डॉ. हरिशंकर पाण्डेय जीवनोन्नयन, भौतिक समृद्धि, शान्त विरासत, त्याग-तपस्या, परमतृप्ति और मोद के साथ समस्त बाधाओं और बन्धनों को बाधित कर पूर्ण विश्रान्ति और मुक्ति में प्रतिष्ठापित होना ही श्रमण-परम्परा का स्वारस्य है। 'श्राम्यति इति श्रमणः', 'सम्यक् मन समनः', 'शमति इति शमन', इत्यादि व्युत्पत्तियों एवं पर्यायों से विभूषित यह परम्परा सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यक्चारित्र रूपी त्रिरत्नों से साधित करने की कमनीय कला से विभूषित तो है ही जीवनोन्नयन के साथ जीवनोत्सर्ग की घटना भी सहज ही घटित होती है। यहाँ भोग, त्याग, संयम, वीर्य सबकुछ होते हुए भी त्याग की प्रधानता है। अहिंसा जिसकी भूमि है, समता, मैत्री, जीवदया, आत्मानुशासन आदि जिसके सहचर हैं। परदमन की अपेक्षा आत्मदमन किंवा आत्मसंयम को जो सहज ही स्वीकार करता है अप्पा चेव दमेयव्वो अप्पा हु खलु दुइमो। अप्पा दंतो सुही होई अस्सिं लोए परत्थय।। जो आत्मवादी, कर्मवादी है, लोकवादी, क्रियावादी है कर्मानुसार विभिन्न लोकों को, पाप-पुण्य को स्वीकार करता है। जो आत्मा की औपपत्तिकता में विश्वास करता है-अस्थि में आया उववाइए । सहसम्मुइयाए, परवागरणेणं अण्णेसिं वा अंतिए सोच्चा। अर्थात् स्मृति से, परवागरण आप्त के निरूपण से तथा अन्य विशिष्ट ज्ञानी के पास आकर तथा उन्हें सुनकर वह जान लेता है, उसकी सात्विक आस्था बन जाती है-'अत्थि में आया उववाइए जो इमाओ दिसाओ वा अणुदिसाओ वा अणुसंचरइ, सव्वाओ दिसाओ सव्वाओ अणुदिसाओ जो आगओ अणुसंचरइ सो ह इस अनुसंचरण-ज्ञान रूप समरस सात्विकता के धरातल पर यह बैखरी वाक् सहज ही स्फूर्त हो जाती है___'से आयावादी लोयावादी कम्मावादी किरियावादी जो अनुसंचरण को जान लेता है, वही आत्मवादी है, लोकवादी होता है, कर्मवादी तथा क्रियावादी होता है। श्रमण परम्परा की यही अवधारणा समत्ववाद के सुगंध से, मनमोहक
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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