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________________ ५४ : श्रमण, वर्ष ६०-६१, अंक ४, १ / अक्टू.-दिसम्बर ०९-जन.-मार्च-१० आती है, जो अपने परिवार की कलंक से रक्षा करने के लिए सती होना चाहती थी। लेकिन राजकुल में सती होने की प्रथा नहीं थी, इसलिए राजा ने उसे रोक दिया। इसके बाद राजा की मृत्यु हो जाने पर जब कोई उत्तराधिकारी न मिला तो उस विधवा कन्या को राजपद (इत्थिनरिंद) दिया गया। पुत्रविहीन राजा के उत्तराधिकारी की खोज-उत्तराधिकारी खोज निकालने के लिए यथासम्भव सभी प्रकार के उपाय काम में लिए जाते थे। इस सम्बन्ध में बृहत्कल्पभाष्य में एक मनोरंजक कथा आती है। किसी राजा के तीन पुत्र थे। तीनों ही ने दीक्षा ग्रहण कर ली। संयोगवश कुछ समय बाद राजा की मृत्यु हो गयी। मन्त्रियों ने राजलक्षणों से युक्त किसी पुरुष को खोजना आरम्भ किया, लेकिन सफलता न मिली। इतने में पता चला कि उक्त तीनों राजकुमार मुनिवेष में विहार करते हुए नगर के उद्यान में ठहरे हुए हैं। मन्त्रीगण छत्र, चमर और खड्ग आदि उपकरणों के साथ उद्यान में पहँचे। राजपद स्वीकार करने के लिए तीनों से निवेदन किया गया। पहले ने दीक्षा त्याग कर संसार में पुनः प्रवेश करने से मना कर दिया, दूसरे को आचार्य ने साध्वियों के किसी उपाश्रय में छिपा दिया। लेकिन तीसरे ने संयम के पालन करने में असमर्थता व्यक्त की। मन्त्रियों ने उसे नगर में ले जाकर उसका राजतिलक कर दिया। ऐसी स्थिति में उत्तराधिकारी चुनने का एक और भी तरीका था। नगर में एक दिव्य घोड़ा घुमाया जाता और वह घोड़ा जिसके पास जाकर ठहर जाता उसे राजपद पर अभिषिक्त कर दिया जाता। पुत्रविहीन वेन्यातट के राजा की मृत्यु होने पर उसके मन्त्रियों को चिन्ता हुई। वे हाथी, घोड़ा, कलश, चामर और दण्ड इन पाँच दिव्य पदार्थों को लेकर किसी योग्य पुरुष की खोज में निकले। कुछ दूर जाने पर उन्होंने देखा कि मूलदेव एक वृक्ष की शाखा के नीचे बैठा हुआ है। उसे देखते ही हाथी ने चिग्घाड़ मारी, घोड़ा हिनहिनाने लगा, कलश जल के द्वारा उसका अभिषेक करने लगा, चमर उसके सिर पर डोलने लगा और दण्ड उसके पास जाकर ठहर गया। यह देखकर राजकर्मचारी जय-जयकार करने लगे। मूलदेव को हाथी पर बैठाकर धूमधाम से नगर में लाया गया तथा मन्त्रियों और सामन्त राजाओं ने उसे राजा घोषित किया। राजकुमार करकण्डु के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार की कथा है। घोड़ा राजकुमार की प्रदक्षिणा करने के बाद उसके सामने आकर खड़ा हो गया। तत्पश्चात् नागरिकों ने उसके शरीर पर राजलक्षणों को देख जय-जयकार किया, फिर नन्दिघोष सुनाई देने लगा। घोष सुनकर करकण्डु नींद से उठ बैठा। गाजे-बाजे के साथ उसने नगर में प्रवेश किया और उसे कांचनपुर
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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