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जैन आगमों में वर्णित शासन-व्यवस्था : ५३
अपने तीन पुत्रों की परीक्षा के लिए उनके सामने खीर की थालियाँ परोसकर रक्खी और जंजीर में बँधे हुए भयंकर कुत्तों को उन पर छोड़ दिया। पहला राजकुमार कुत्तों को देखते ही खीर की थाली छोड़कर भाग गया। दूसरा उन्हें लकड़ी से मार-मारकर स्वयं खीर खाता रहा। तीसरा स्वयं भी खीर खाता रहा और कुत्तों को भी उसने खिलाई राजा तीसरे राजकुमार से अत्यन्त प्रसन्न हुआ और उसने उसे युवराज बना दिया। कभी राजा की मृत्यु हो जाने पर जिस राजपुत्र को राजसिंहासन पर बैठने का अधिकार मिलता, और यदि वह दीक्षा ग्रहण कर लेता, तो इस हालत में उसके कनिष्ठ भ्राता को राजा के पद पर बैठाया जाता। कभी दीक्षित राजपुत्र संयम धारण करने में अपने आपको असमर्थ पा, दीक्षा त्यागकर, वापस लौट आता, और उसका कनिष्ठ भ्राता उसे अपने आसन पर बैठा, स्वयं उसका स्थान ग्रहण करता।
साकेत नगरी में कुण्डरीक और पुंडरीक नाम के दो राजकुमार रहा करते थे। कुंडरीक ज्येष्ठ था और पुंडरीक कनिष्ठ। कुंडरीक ने श्रमण-दीक्षा ग्रहण कर ली, लेकिन कुछ समय बाद संयम पालन में असमर्थ हो, दीक्षा छोड़ वह वापस लौट आया। यह देखकर उसका कनिष्ठ भ्राता उसे अपने पद पर बैठा, स्वयं श्रमणधर्म में दीक्षित हो गया। कभी राजा युवराज का राज्याभिषेक करने के पश्चात् स्वयं संसार-त्याग करने की इच्छा व्यक्त करता, लेकिन युवराज राजा बनने से इंकार कर देता और वह भी अपने पिता के साथ दीक्षा ग्रहण कर लेता था। पृष्ठ-चम्पा में शाल नाम का राजा राज्य करता था, उसका पुत्र महाशाल युवराज था। जब शाल ने अपने पुत्र को राजसिंहासन पर बैठाकर स्वयं दीक्षा ग्रहण करने की इच्छा व्यक्त की तो महाशाल ने राजपद अस्वीकार कर दिया और अपने पिता के साथ वह भी दीक्षित हो गया।
यदि राजा और युवराज दोनों ही राजपाट छोड़कर दीक्षा ग्रहण कर लेते थे और उनकी कोई बहन होती और उसका पुत्र इस योग्य होता तो उसे राजा के पद पर अभिषिक्त किया जाता था। उपर्युक्त कथा में शाल और महाशाल के दीक्षा ग्रहण कर लेने पर, उनकी बहन के पुत्र गग्गलि को राजसिंहासन पर बैठाया गया। सोलह जनपदों, तीन सौ तिरसठ नगरों और दस मुकुटबद्ध राजाओं के स्वामी वीतिभय के राजा उद्रायण ने अपने पुत्र के होते हुए भी केशी नाम के अपने भानजे को राजपद सौंपकर महावीर के पादमूल में जैन दीक्षा स्वीकार की।
राज्य-शासन की व्यवस्थापिका स्त्रियों के उल्लेख, एकाध को छोड़कर, प्रायः नहीं मिलते। महानिशीथ में किसी राजा की एक विधवा कन्या की कथा