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५२ : श्रमण, वर्ष ६०-६१, अंक ४, १ / अक्टू.-दिसम्बर ०९-जन.-मार्च-१०
गुप्तचर तन्त्र-व्यवहारभाष्य में चार प्रकार के गुप्तचरों का उल्लेख मिलता है-(१) सूचक, (२) अनुसूचक, (३) प्रतिसूचक, (४) सर्वसूचक।
आन्तरिक उपद्रवों और बाह्य आक्रमणों से राज्य की रक्षा करने के लिए मन्त्रीगण गुप्तचरों को धन आदि देकर नियुक्त करते थे। सूचक अन्तःपुर के रक्षकों के साथ मैत्री करके अन्तःपुर के रहस्यों का पता लगाते थे, अनुसूचक नगर के परदेशी गुप्तचरों की तलाश में रहते थे, प्रतिसूचक नगर के द्वार पर बैठकर दर्जी आदि का छोटा-मोटा काम करते हुए दुश्मन की घात में रहते थे तथा सर्वसूचक, सूचक, अनुसूचक और प्रतिसूचक से सब समाचार प्राप्त कर अमात्य से निवेदित करते थे। ये गुप्तचर कभी पुरुषों और कभी महिलाओं के रूप में सामन्त राज्यों और सामन्त नगरों तथा अपने राज्य, अपने नगरों और राजा के अन्तःपुर में गुप्त रहस्यों का पता लगाने के लिए घूमते रहते थे।
अन्तःपुर के रक्षक-जिस प्रकार कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में वृद्धा स्त्रियों और नपुंसकों से अन्तःपुर की रक्षा करने का विधान किया है। उसी प्रकार
जैन आगमों में भी नपुंसक और वृद्ध पुरुष का अन्तःपुर की रक्षा के लिए तैनात होने का उल्लेख मिलता है। कंचुकी को राजा के महल में आने-जाने की छूट थी। वह विनीत वेष धारण करता तथा राजा की आज्ञापूर्वक अन्तःपुर की रानियों के पास राजा का सन्देश लेकर और रानियों का संदेश राजा के पास लेकर जाता था। महत्तर अन्तःपुर का एक अन्य अधिकारी होता था। रानियों को राजा के पास लाना, उनके कोप को शान्त करना तथा कोप का कारण ज्ञात होने पर राजा से निवेदन करना उसका मुख्य कार्य था। दण्डधर हाथ में दण्ड धारण कर अन्तःपुर का पहरा देते रहते थे, दण्डारक्षिक राजा की आज्ञा से किसी स्त्री अथवा पुरुष को अन्तःपुर में ले जाते थे तथा दौवारिक द्वार पर बैठकर अन्तःपुर की रक्षा करते थे।
युवराज और उसका उत्तराधिकार-राजा का पद साधारणतया वंश परम्परागत माना गया है। जैन आगमों में सापेक्ष और निरपेक्ष नामक दो प्रकार के राजा बताये गये हैं। सापेक्ष राजा अपने जीवनकाल में ही अपने पुत्र को युवराज पद दे देता था जिससे राज्य की गृहयुद्ध आदि संकटों से रक्षा हो जाये। निरपेक्ष राजा के सम्बन्ध में यह बात नहीं थी। उसकी मृत्यु के बाद ही उसके पुत्र को राजा बनाया जाता था। ___ यदि राजा के एक से अधिक पुत्र होते तो उनकी परीक्षा की जाती, और जो राजपुत्र परीक्षा में सफल होता, उसे युवराज बनाया जाता। किसी राजा ने