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जैन आगमों में वर्णित शासन-व्यवस्था : ५१
सार्थवाह, संधिपाल, पीठमर्द, महावत, यानशालिक, विदूषक, दूत, चेट, वार्तानिवेदक, किंकर, कर्मकर, असिग्राही, धनुग्राही, कोतग्राही, छत्रग्राही, चामरग्राही, वीणाग्राही, भाण्ड, अभ्यंग लगाने वाले, उबटन मलने वाले, स्नान कराने वाले, वेशभूषा से मण्डित करने वाले, पैर दबाने वाले आदि कितने ही कर्मचारी राजा की सेवा में उपस्थित रहते थे।
दण्डनीति-जैन आगमों में सात प्रकार की दण्डनीति बतायी गयी है। पहले और दूसरे कुलकर के समय हक्कार नीति प्रचलित थी, अर्थात् किसी अपराधी को 'हा' कह देने मात्र से वह दण्ड का भागी हो जाता था। तीसरे और चौथे कुलकर के काल में 'मा' (मत) कह देने से वह दण्डित समझा जाता था, इसे मक्कार नीति कहा गया है। पाँचवें और छठे कुलकर के समय धिक्कार नीति का चलन हुआ। तत्पश्चात्, ऋषभदेव के काल में परिभाषण (क्रोध प्रदर्शन द्वारा ताड़ना) और परिमण्डलबंध (स्थानबद्ध कर देना), तथा उनके पुत्र भरत के काल में चारक (जेल) और छविच्छेद (हाथ, पैर, नाक आदि का छेदन) नामक दण्डनीतियों का प्रचार हुआ।
परिषद्-केन्द्रीय शासन की व्यवस्था में परिषदों का महत्त्वपूर्ण स्थान था। जैन आगमों में पाँच प्रकार की परिषदों का उल्लेख मिलता है-(१) पूरयंती परिषद्, (२) छत्रवती परिषद्, (३) बुद्धि परिषद् (४) मन्त्री परिषद्, (५) राहस्यिकी परिषद्। राजा जब यात्रा के लिए बाहर जाता और जब तक वापस लौट कर न आ जाता, तब तक राज-कर्मचारी उसकी सेवा में उपस्थित रहते थे। इस परिषद् को पूरयन्ती परिषद् कहा गया है। छत्रवती परिषद् के सदस्य राजा के सिर पर छत्र धारण करते थे और राजा की बाह्यशाला तक वे प्रवेश कर सकते थे, उसके आगे नहीं। बुद्धि परिषद् के सदस्य लोक, वेद और शास्त्र के पण्डित होते थे, लोक-प्रचलित अनेक प्रवाद उनके पास लाये जाते थे, जिनकी वे छानबीन करते थे। चौथी परिषद् मन्त्री-परिषद् कही जाती थी। इस परिषद् के सदस्य कौटिल्य आदि राजशास्त्रों के पण्डित होते थे, और उनके पैतृक वंश का राजकुल से सम्बन्ध नहीं होता था। ये हित चाहने वाले, वयोवृद्ध तथा स्वतन्त्र विचारों के होते थे
और राजा के साथ एकान्त में बैठकर मन्त्रणा करते थे। पाँचवीं परिषद् का नाम है-राहस्यिकी परिषद, यदि कभी रानी राजा से रूठ जाती, या कोई राजकुमारी विवाह के योग्य होती, तो इन सब बातों की सूचना राहस्यिकी परिषद् के सदस्य राजा के पास पहुँचाते थे। रानियों के गुप्त प्रेम तथा रतिकर्म की सूचना भी ये लोग राजा को देते रहते थे।