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५० : श्रमण, वर्ष ६०-६१, अंक ४, १ / अक्टू.-दिसम्बर ०९-जन.-मार्च-१०
का सार यह है कि शासन को सुचारु रूप से चलाने के लिए राजा का सुयोग्य होना आवश्यक है।
२. राजा के प्रधान पुरुष-जैन ग्रन्थों में राजा, युवराज, अमात्य, श्रेष्ठि और पुरोहित-ये पाँच प्रधान पुरुष बताए गए हैं। युवराज राजा का भाई, पुत्र अथवा अन्य कोई सगा-सम्बन्धी होना चाहिए। वह अणिमा, महिमा आदि आठ प्रकार के ऐश्वर्य से युक्त हो। बहत्तर कलाओं, अट्ठारह देशी भाषाओं, गीत, नृत्य तथा हस्तियुद्ध, अश्वयुद्ध, मुष्टियुद्ध, बाहुयुद्ध, रथयुद्ध, धनुर्वेद आदि में वह निपुण होवे। राजा के प्रधान पुरुषों में मन्त्री का स्थान सबसे महत्त्व का है। वह जैसे भी हो, शत्रु को पराजित कर, राज्य की रक्षा के लिए सतत् प्रयत्नशील रहे। आवश्यकचूर्णि में एक कथा के माध्यम से यह समझाया गया है कि कभीकभी कूटनीति से राजा मन्त्री को झूठ-मूठ ही सभासदों के सामने अपमानित कर राज्य से निकाल दे। मन्त्री विपक्षी राजा से जा मिले फिर वहाँ शनैः-शनैः उसका विश्वास प्राप्त करे। इस प्रकार की कूटनीति विपक्षी राजा को पराजित करने में काम आती है। व्यवहारभाष्य में लिखा है कि मन्त्री अपने जनपद, नगर और राजा के सम्बन्ध में सदा चिन्तित रहे और व्यवहार व नीति में निपुण रहे। यही बात कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी कही गई है। ज्ञातृधर्मकथा में एक कथा आती है-'राजा श्रेणिक का प्रधानमन्त्री अभय कुमार शाम, दाम, दण्ड और भेद में कुशल, नीतिशास्त्र में पण्डित, गवेषणा आदि में चतुर, अर्थशास्त्र में विशारद तथा औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिक और पारिणामिकी नामक चार प्रकार की बुद्धियों में निष्णात था। राजा श्रेणिक उससे अपने अनेक कार्यों और गुप्त रहस्यों के बारे में मन्त्रणा किया करता था। आवश्यकचूर्णि व निशीथचूर्णि में एक कथा के माध्यम से समझाया गया है कि मन्त्री विशेष परिस्थितियों में अयोग्य राजा को हटाकर उसके स्थान पर दूसरे राजा को गद्दी पर बैठा सकता था।' श्रेष्ठी (णिगमारक्खिअ = नगरसेठ) अट्ठारह प्रकार की प्रजा का रक्षक कहलाता था। राजा द्वारा मान्य होने के कारण उसका मस्तक देव मुद्रा से भूषित सुवर्णपट्ट से शोभित रहता था। राजा के प्रधान पुरुषों में पुरोहित की भी आवश्यकता रहती थी। विपाकसूत्र में जितशत्रु राजा के महेश्वर दत्त नामक पुरोहित का उल्लेख मिलता है। मिलिन्दप्रश्न में राजपुरुषों में सेनापति, पुरोहित, अक्खदस्स, भण्डागारिक, छत्तगाहक और खग्गगाहकों का उल्लेख प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त ग्राममहत्तर, राष्ट्रमहत्तर, रट्ठउड़ (राठौड़३), गणनायक, दण्डनायक, तलवर कोट्टपाल (णगररक्खिअ) कौटुम्बिक, गणक (ज्योतिषी), वैद्य,