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श्रमण, वर्ष ६०-६१, अंक ४-१ ८. - दिस. ०९ - जन. - मार्च १०
अक्टू.
जैन आगमों में वर्णित शासन-व्यवस्था
डॉ. अरुणिमा रानी *
श्रमण धर्म के अनुयायी होने के कारण जैन विद्वानों ने यद्यपि तप, त्याग और वैराग्य के ऊपर ही जोर दिया तथापि जैन आगमों में शासन- सम्बन्धी जो जानकारी मिलती है वह तत्कालीन समाज को चित्रित करने के लिए पर्याप्त है। जैन आगमों में यत्र-तत्र बिखरी हुई शासन सम्बन्धी जानकारी का दिग्दर्शन कराना प्रस्तुत शोध-1 -पत्र का विषय है। विवेच्य विषय है-जैन आगमों में राजा व उसके प्रधान पुरुषों के क्या कर्त्तव्य हैं? तत्कालीन दण्डनीति कैसी थी ? शासन व्यवस्था में परिषदों की क्या भूमिका थी? उस समय का गुप्तचर तन्त्र कितना दृढ़ था ? अन्तःपुर के रक्षकों के रूप में किसे नियुक्त किया जाता था ? राजा का उत्तराधिकारी कौन होता था? पुत्रविहीन राजा के उत्तराधिकारी की खोज करने में कौन से तरीके काम में लाए जाते थे? इत्यादि ।
१. राजा के कर्त्तव्य - निशीथभाष्य' में लिखा है कि राजा को सर्वगुणसम्पन्न होना चाहिए। यदि वह स्त्रियों में आसक्त रहता है, द्यूत रमण करता है, मद्यपान करता है, शिकार में समय व्यतीत करता है, कठोर वचन बोलता है, कठोर दण्ड देता है और धन सञ्चय के लिए प्रयत्नशील नहीं रहता तो वह नष्ट हो जाता है। व्यवहारभाष्य' में राजा के मातृपक्ष व पितृपक्ष के शुद्ध होने पर जोर दिया गया है। वह लोकाचार, वेद और राजनीति में कुशल और धर्म में श्रद्धावान् होना चाहिए। उसे प्रजा से दसवाँ हिस्सा कर (टैक्स) लेकर सन्तुष्ट रहना चाहिए । औपपातिक सूत्र में चम्पा के राजा कूणिक अजातशत्रु के विषय में एक कथा उल्लिखित है। चम्पा का राजा कूणिक महाप्रतापी क्षत्रिय राजा था। वह अत्यन्त विशुद्ध, चिरकालीन राजवंश में प्रसूत, राजलक्षणों से युक्त, बहुजन सम्मानित, सर्वगुण समृद्ध, राज्याभिषिक्त और दयालु था। वह सीमा का प्रतिष्ठाता, क्षेमकारक और जनपद का पालक था । दान-मान आदि से वह लोगों को सम्मानित करता था। वह धन-धान्य, सुवर्ण, रुप्य, भवन, शयन, आसन, यान, वाहन, दासी, गाय, भैंस, माल - खजाना, कोठागार और शास्त्रागार आदि से सम्पन्न था। इस कथा
* प्रक्क्ता संस्कृत विभाग, एस. डी. महाविद्यालय, मुजफ्फरनगर