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जैन आगमों में वर्णित शासन-व्यवस्था : ५५
का राजा घोषित कर दिया गया। इसी तरह नापित-दास नन्द की ओर घोड़ा पीठ करके खड़ा हो गया और उसे पाटलिपुत्र का राजा बना दिया गया।
इस प्रकार जैन आगमों में कौटिल्य अर्थशास्त्र की भाँति शासन-व्यवस्था सम्बन्धी विधि-विधानों का व्यवस्थित उल्लेख नहीं मिलता। जो कुछ संक्षिप्त उल्लेख प्राप्त होता है वह केवल कथा-कहानियों के रूप में ही है। ये कथाकहानियाँ साधारणतया तत्कालीन सामान्य जीवन का सम्यक् चित्रण करती हैं। सन्दर्भ-सूची १. निशीथभाष्य, १५.४७.४९। २. व्यवहारभाष्य १, पृ. १२८। ३. औपपातिक सूत्र ६, पृ. २०। ४. औपपातिक सूत्र ४०, पृ. १८५। ५. आवश्यकचूर्णि २, पृ. २००। ६. सजणवयं पुरवरं चिंततो अत्थइ नरवतिं चा ववहारनीतिकुसलो, अमच्चो
एयारिसो अहवा।। -व्यवहारभाष्य पृ. १३१। ७. कौटिल्य, अर्थशास्त्र १.८-९, ४-५। ८. ज्ञातृधर्मकथा १, पृ. ३। ९. (अ) आवश्यकचूर्णि, पृ. ५३४, (ब) निशीथचूर्णि ११.३७३५ चूर्णि। १०. (अ) बृहत्कल्पभाष्य, ३.३७५७ वृत्ति, (ब) राजप्रश्नीयटीका, पृ. ४०। ११. विपाकसूत्र, पृ. ३३। १२. मिलिन्दप्रश्न, पृ. ११४। १३. निशीथभाष्य, ४.१७३५। १४. रायप्रतिमो चामरबिरहितो तलवरो भण्णति। निशीथभाष्य, ९.२५०२ १५. जम्बूद्वीपप्रज्ञति, २.२९; स्थानांगसूत्र ७.५५७। १६. बृहत्कल्पभाष्य पीठिका, ३७५-३८३। १७. व्यवहारभाष्य १, पृ. १३०-अ इत्यादि। महाभारत (शान्तिपर्व ६८०.१२) में
गुप्तचरों की नियुक्ति राजा का प्रमुख कर्त्तव्य माना गया है। उन्हें नगरों, प्रान्तों और सामन्त प्रदेशों में नियुक्त करने का विधान है। इसी विषय में द्रष्टव्य है
अर्थशास्त्र, १.११-१२.७-८। १८. अर्थशास्त्र, १.२१.१७.३१। १९. निशीथचूर्णि, ९.२५१५-१६, पृ. ४५२, वाचस्पति ने अपने कोष में कंचुकी
के लक्षण बताते हुए कहा है-अन्त:पुरचरो वृद्धो विप्रो गुणगणान्वितः। सर्वकार्यार्थकुशलो कंचुकीत्यभिधीयते।।